"हम लोगों का बचपन लगभग समकालीन ही रहा है,मुझे भी भगवा भेष में सारंगी बजाकर गीत गाते घर घर जाकर भीख मांगते जोगी याद हैं। हम उन्हें जोगी बाबा कहते थे।लोग उन्हें बैठने को कहते और जलपान का आग्रह करते लेकिन वे कभी कभी किन्हीं के दुआर पर बैठकर पानी पीते।वे ङर टोले (जातियों) के घरों पर जाते।लोग उन्हें सम्मान से भीख देते थे।हमारे गांव में एक जोगी बच्चों में बहुत लोकप्रिय थे।बाग में एक नीम के चबूतरे पर बैठकर फरमाइश पर गीत सुनाते।मुझे सारंगी बजाना सिखाने की कोशिस करते लेकिन शून्य संगीत बोध के चलते मैं सीख न सका।
Saturday, April 6, 2024
बेतरतीब 176 (जोगी)
Friday, April 5, 2024
Utopia
As long as things don't happen it looks utopia to hopeless people. In my childhood in my village a woman holding a public office was considered utopia; I had to wage a tough battle with my clan for my sister's higher education beyond middle school in 1982, as higher education of a girl was an utopia same was true about Dalit children. Today no parents can dare to publicly say to differentiate between a son and a daughter. Similarly no one can publicly talk about differentiation on the basis of caste hierarchy. Yesterday's utopia is today 's reality.
06.04.2022
सच्चाई और ईमान के गौरव की बात
सच्चाई और ईमान के गौरव की बात
Tuesday, April 2, 2024
शिक्षा और ज्ञान 352 (नास्तिकता)
एक जनपक्षीय विद्वान मित्र ने एक विमर्श में अपनी अपनी जातीय पहचान छोड़कर संवैधानिक जाति (अंबेडकर) अपनाने की बात की और अंबेडकर की मिशाल दी जिन्होंने हिंद धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया।
या जाति-धर्म छोड़कर नास्तिक बन जाएगा, जैसा भगत सिंह ने किया था और जातीय-धार्मिक-क्षेत्रीय पहचान छोड़कर विवेकसम्मत, इंसानियत की पहचान बनाएगा तथा किसी अलौकिक शक्ति पर भरोसे की बैशाखी पर चलने की बजाय आत्मबल की अनुभूति के बल पर जीवन में आगे बढ़ेगा। सही कह रहे हैं दुनिया रुकती नहीं आगे ही बढ़ती रहती है। इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होता लेकिन प्रतिगामी ताकतों के प्रभाव में यदा-कदा अस्थाई यू-टर्न ले लेती हैं, लेकिन अंततः आगे ही बढ़ती है और पाषाणयुग से साइबर युग तक पहुंचती है। जैसे कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता वैसे ही इतिहास की गाड़ी का कोई अंतिम प़ड़ाव नहीं होता, वह अपने गतिविज्ञान के नियम विकसित करती निरंतर प्रक्रिया में चलती रहती है। सादर।
Monday, March 25, 2024
शिक्षा और ज्ञान 351 ( hypotheses और theory)
hypotheses और theory के अंतःसंबंधों की एक पोस्ट पर एक कमेंटः
भौतिक/ जैविक/ प्राकृतिक/ सामाजिक/ मानसिक विज्ञान की पूर्वमान्यताएं (hypotheses) विशिष्ट क्षेत्र की विशिष्ट परिघटना की बारंबारता के इंद्रियबोध से प्राप्त अनुभव को दिमाग द्वारा विश्लेषण/ मनन के आधार पर बनती हैं, जो सत्यापित या स्थापित सिद्धांतों के आधार पर प्रमाणित होने के बाद सिद्धांत बन जाती हैं। जब तक सत्यापित/प्रमाणित नहीं हो पाते hypotheses hypotheses ही बने रहते हैं, सिद्धांत नहीं बनते।
उसी पोस्ट पर एक कमेंट का जवाबः
विचार निर्वात से नहीं, वे वस्तु के चेतन या अवचेतन इंद्रियबोध से ही आते हैं। न्यूटन के दिमाग में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज का विचार वस्तुओं के ऊर्ध्वाधर पतन के इंद्रियबोध से आया Write brothers के दिमाग में हवाईजहाज की तकनीक की खोज का विचार पंख वाले जीवों (पक्षियों) को उड़ते देखकर आया।
Sunday, March 24, 2024
मार्क्सवाद 299 (मेरठ केस)
1920-30 के दशकों में मजदर नेताओं पर चले मेरठ-षड्यंत्र मुकदमें पर Dr. Bhagwan Prasad Sinha की एक ज्ञानवर्धक पोस्ट पर कमेंट:
अंग्रेजों के तत्कालीन दलाल और आज बिना अर्थ जाने राष्ट्रभक्ति की सनद बांटने वाले कम्युनिस्टों पर तमाम ऊलजलूल लांछन लगाते रहते हैं, कम्युनिस्ट पार्टी एक मात्र पार्टी है जिस पर पार्टी के रूप में, औपनिवेशिक शासन द्वारा दो-दो मुकदमे (कानपुर-मेरठ) चलाए गए, जिसके सदस्य, काला पानी समेत लंबे समय तक जेलों की यातनाएं सहे लेकिन टूटकर माफीवीर नहीं बने; एक मात्र पार्टी है जो औपनिवेशिक शासन में प्रतिबंधित रही। जब धर्म के नाम पर बरगलाए गए युवक, औपनिवेसिक आकाओं के आशिर्वाद से आरएसएस की शाखाओं में खुलेआम लट्ठ भांजते थे तब कम्युनिस्ट कार्यकर्ता भूमिगत रहकर मजदूरों को संगठित कर रहे थे। मजदूरों की गजब की अंतरराष्ट्रीयता था, ब्रेडले और स्पार्ट (अंग्रेज कैदीियों ) ने औपनिवेशिक शासन के प्रलोभनों को ठुकराकर अपने हिंदुस्तान साथियों के साथ औपनिवेशिक जेलों के जुल्म को चुना। कानपुर और मेरठ केस के क्रांतिकारियों को सलाम। मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय भाईचारे को सलाम।
Thursday, March 21, 2024
शिक्षा और ज्ञान 350 (प्लेटोनिक लव)
Platonic Love का प्रयोग लोग प्रायः इसका मंतव्य बिना ही वासना या यौन-आकर्षण विहीन आध्यात्मिक संबेध के अर्थ में करते हैं। प्लेटो नैतिकतावादी है, शुद्धतावादी (puritan) नहीं। सेक्स अपने आप में बुराई नहीं है, बल्कि संतानोपत्ति के लिए आवश्यक और अपरिहार्य। लेकिन यदि इसके चलते व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाए तो यह बुराई बन जाती है। इसीलिए वह अपने आदर्श राज्य में शासक वर्गों के बीच नियंत्रित और नियोजित सेक्स की व्यवस्था करता है। उसके आदर्श राज्य में सेक्स भावी शासक पैदा करने का एक टूल है। राज्य तय करता है कि कौन, कब, किस पवित्र अवसर पर किसके साथ सोएगा। दार्शनिक राजा लॉटरी में हेरा-फेरी से सुनिश्चत करता है कि योग्य पुरुष और योग्य स्त्री के बीच समागम अधिकतम हो और अयोग्यों के बीच न्यूनतम तथा सेक्स पार्टनर्स के बीच कोई भावनात्मक लगाव न हो। मां बच्चे को दूध पिलाने के अलावी उससे कोई भावनात्मक लगाव न रखे। राज्य नियंत्रित शिशुशालाओं में बच्चों का समुचित पालन-पोषण हो तथा व्यक्तिगत रूप से न कोई किसी का बेटा/बेटी होगा न कोई किसी का भाई-बहन। सब बच्चे आपस में भाई-बहन हैं और सभी प्रौढ़ उनके माता-पिता। इनसेस्ट संबंध रोकने का कोई उपाय नहीं बताया है। इस पर विस्तार से फिर कभी । राजनैतिक दर्शन के इतिहास में आदर्शवाद का प्रवर्तक प्लेटो वास्तविकता का सार पर्थिव (भौतिक) विश्व में नहीं विचारों की दुनिया में स्थापित करता है, सौंदर्य वस्तु की नहीं उसके विचार का होता है। वह कामदेव (इरोज) कभी शारीरिक संबंधों के अर्थ में करता है तो कभी शिव (good) की प्राप्ति की प्रबल उत्कंठा के रूप में करता है। वह भावना (emotion) या जूनून (passion ) को व्यक्तितव का निम्नतर तत्व मानता है तथा विवेक को श्रेष्ठतर इसलिए भावना या जुनून पर विवेक के सख्त नियंत्रण या दिल पर दिमाग के राज की हिमायत करता है। इंद्रियो द्वारा महसूस की जाने वाली वस्तु का सार वस्तु में नहीं उसके विचर में स्थापित करता है। इसलिए प्यार नहीं प्यार का विचार सत्य है। वह यह नहीं बताता कि प्यार (वस्तु) के बिना उसका विचार कैसे और कहां से आता है?