एक पोस्ट पर कमेंट
विपरीत परिस्थितियों में नास्तिक-आस्तिक सब परेशान होते हैं, आस्तिक भगवान के नाम की बैशाखी में राहत के भ्रम में रहता है नास्तिक जानता है कि राहत के भ्रम से वास्तविक राहत नहीं मिलती, वह जानता है कि अगवान-भगवान जब होता ही नहीं तो राहत कहां से देगा? वह भगवान की बैशाखी का सहारा लेने की बजाय अपने पैरों को ही मजबूत करने की कोशिश करता है।
उक्त पोस्ट पर मैंने एक कमेंट में लिखा कि नास्तिकता के लिए साहस की जरूरत होती है तो एक सज्जन ने कहा कि संगम में डूबने की स्थिति में साहस गायब हो जाता है। उस परः
नास्तिक का साहस कभी लुप्त नहीं होता, वह जानता है संगम पर नाव क्यों डूब रही है, वह उससे निपटने का विवेकसम्मत प्रयास करता है, आस्तिक भगवान भगवान चिल्लाकर डूबता है।कई लोग कहते हैं कि जवानी का जोश बुढ़ापे में खत्म हो जाता है तब भगवान का भरोसा होता है, मैं तो 70 पार कर गया अभी भगवान की बैशाखी की जरूरत नहीं महसूस हुई। इसका सही जवाब भगत सिंह ने शहादत के पहले लिखे अपने कालजयी लेख, 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में दिया है। खोजकर लिंक पस्ट करता हूं। आत्मबल जुटाइए भगवान की बैशाखी की जरूरत नहीं महसूस होगी।
नास्तिक का साहस कभी लुप्त नहीं होता, वह जानता है संगम पर नाव क्यों डूब रही है, वह उससे निपटने का विवेकसम्मत प्रयास करता है, आस्तिक भगवान भगवान चिल्लाकर डूबता है।कई लोग कहते हैं कि जवानी का जोश बुढ़ापे में खत्म हो जाता है तब भगवान का भरोसा होता है, मैं तो 70 पार कर गया अभी भगवान की बैशाखी की जरूरत नहीं महसूस हुई। इसका सही जवाब भगत सिंह ने शहादत के पहले लिखे अपने कालजयी लेख, 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में दिया है। खोजकर लिंक पस्ट करता हूं। आत्मबल जुटाइए भगवान की बैशाखी की जरूरत नहीं महसूस होगी।
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