केरल की खेती का पैटर्न अलग है। धान के अलावा अन्य ज्यादातर अनाजों के लिए वह अन्य राज्यों से खरीद पर निर्भर है। चमचे और गुलाम सत्ता के होते हैं, फिरकापरस्ती की नफरत फैलाकर देशके टुकड़े करने वाला अंधभक्तों का गैंग अपनी खीझ मिटाने के लिए अपनी छवि दूसरों पर थोपने की कोशिस करता है।केरल केरल चिल्लाने वाले अंधभक्तों के जानना चाहिए कि वहां मुख्यतः फल और मसालों की खेती खेती होती है। वैसे सीपीएम और अन्य पार्टियों में बहुत गुणात्मक फर्क नहीं है, लेकिन मात्रात्मक फर्क ही उल्लेखनीय असर डालता है। केरल में फल-सब्जियों के भी न्यूनतम मूल्य निर्धारित हैं तथा केरल के किसान खुशहाल किसान हैं। केरल शिक्षा में सभी प्रदेशों से बहुत आगे है। चिलचिलाती ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर साम्राज्यवादी, भूमंडलीय पूंजी के निर्देश पर खेती के कॉरपोरेटीकरण के विरुद्ध डटे किसानों का क्रांतिकारी दृढ़संकल्प ऐतिहासिक है। अंधभक्तों का गैंग और मृदंग मीडिया उनके बारे में कितना भी दुष्प्रचार क्यों न कर ले यह आंदोलन थमने वाला नहीं है। देश-दुनिया के तमाम कामगर उनके साथ हैं। इन बेचारों पर तरस खाना चाहिए। अब बिहार के किसानों ने बिहार की सड़कों को लाल कर दिया है जिससे मृदंग मीडिया और अंधभक्तों में बौखलाहट मच गयी है। बता दें कि किसान आंदोलन की चिन्गारी बिहार से ही उठती रही है चाहे वह चंपारण स् शुरू किसान विद्रोह हो या सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हो, 1960 के दशक का मुसहरी किसान विद्रोह हो या 1980 के दशक का केंद्रीय बिहार (भोजपुर) का किसान आंदोलन। अंधभक्तों के गिरोह और मृदंग मीडिया को यह भी जान लेना चाहिए कि बिहार के इन ऐतिहासिक क्रांतिकारी किसान आंदोलनों का झंडा लाल ही रहा है। क्रांतिकारी किसानों को जयभीम-लाल सलाम। इंकिलाब जिंदाबाद।
मोदी के पहली बार सत्ता में आने के बाद से ही संघी गिरोह तीन मोर्चों पर कामयाबी के साथ लगा हुआ है -- पहला मोर्चा है वैचारिक, मीडिया को मृदंग बनाना तथा शिक्षा का अनकूलन तथा व्यापारीकरण। हिंदुत्व ब्राह्मणवाद का ही राजनैतिक संस्करण है। नागपुर गिरोह भलीभांति जानता है कि ब्राह्मणवाद का वर्स्व हजारों साल सास्कृतिक संसाधनों तथा संप्रषण माध्यमों (मीडिया -- कथा वाचन, धार्मिक प्रवचन, कथा वाचन, कर्मकांड आदि) पर नियंत्रण तथा शिक्षा पर एकाधिकार से ही विचारधारा के रूप में ब्राह्मणवाद का वर्चस्व हजारों साल बरकरार रहा। उसने कॉरपोरेटी तथा सत्ता के औजारों के बलबूते मीडिया को मृदंग बना दिया। शिक्षा का भगवाकरण, व्यापारीकरण जारी है। राज्य पोषित होने के चलते गरीब-गुरबा, दलित-पिछड़े, आदिवासी आदि वंचित समुदायों केनभीलड़के लड़कियां पढ़-लिख ले रहे हैं/थे। शिक्षा पर हमला कई मोर्चों से हो रहा है, जिसके विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है। 1915-16 में मैंने इस पर कुछ काम किया था उसे अपडेट करके शेयर करूंगा।[ सितंबर 2016 में समकालीन तीसरीदुनिया में, 'ज्ञान, शिक्षा तथा वर्चस्व' तथा 20015 में वायस ऑफ रेजिस्टेंस में 'न्यू एजूकेसन पॉलिसी, न्यू ईसूज एंड न्यू चैलेंजेज']
दूसरा मोर्चा -- अर्थ व्यवस्था धनपशुओं के हवाले करना जिसमें उन्हें टैक्स में छूट, बैंकों की लूट, तथा सार्वजनिक उपक्रमों की औने-पौने दाम में बिक्री शामिल है।
तीसरा मोर्चा -- आर्थिक मुद्दों, गरीबी, बेरोजगारी, गैरबराबरी, मंहगाई आदि से ध्यान भटकाने के लिए चुनावी ध्रुवीकरण -- जिसमें मुजफ्फरनगर के बाद लो इंटेंसिटी सांप्रदायिक कार्यक्रम तथा राष्टोंमाद शामिल है, जेएनयू, तीन तलाक, दादरी से शुरू गोरक्षक लिंचिंग, कश्मीर -- बुरहान वानीन की हत्या, पुलवामा, बालकोट आदि शामिल है। नागरिकता संशोधन अधिनियम उसी का हिस्सा है। गिरोह ने सोचा था कि मुसलमान पिछले मुद्दों पर आंदोलित नहीं हुआ इस पर होगा, लेकिन उनके आकलन के विपरीत इस पर आमजन और खासकर देश भर का छात्र आंदोलित हो गया है, यह उनके लिए चिंता का विषय है हमें सोचना है कि उनकी चिंता कैसे बढ़ाया जाए। सिकागो में एक प्रोटेस्ट में मेरी बेटी ने 'हिंदू मुसिलिम राजी तो क्या करेगा नाजी' पोस्टर के साथ प्रोटेस्ट में शिरकत की। पूरी मशीनरी, मीडिया और ट्रोल गिरोह प्रोटेस्ट को बजदनाम करने और शातिरानाढंग से हिंदू-मुस्लिम बाइनरी के नरेटिव को बनाए रखने पर पूरे जोर-शोर से जुट गया है। हम सफल होते हैं तो उनकी उल्टी गिनती शुऱू, वे सफल होते हैं तो देश की। वे 2024 के चुनाव में सांप्रदायिक एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
26.12.2020