Saturday, December 12, 2020

मार्क्सवाद 230(किसान)

 भारत में ज्यादातर पूंजीपति दलाल यानि सरकार-समर्थित (क्रोनी) पूंजीपति हैं। मौजूदा समय में सरकारी संसाधनों की लूट से फूलने-फलने वाले धनपशुओं (पूंजी पतियों) में अंबानी-अडानी के नाम अग्रणी हैं। नए किसान कानूनों के परिणामस्वरूप खेती के संविदादाकरण (contract farming) तथा कॉरपोटीकरण से किसानों की बर्बादी से सबसे अधिक फायदा इन्हीं को होने वाला है। किसानों ने इनके उत्पादों के बहिष्कार का फैसला किया है। राष्ट्रीय आंदोलन के हथियार के रूप में बहिष्कार का पहला प्रयोग बंगाल के बांटने की अंग्रेजी चाल के विरुद्ध 1905 में हुआ। जैसा सब जानते हैं, उसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक प्रयोग गांधी के नेतृत्व में दनांदोलन के रूप में असहयोग आंदोलन में हुआ जिसने एक तरफ अभूतपूर्व राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया दूसरी तरफ औपनिवेशिक शासन को भयानक झटका दिया।


किसान क्या अंबानी-अडानी से लड़ पाएंंगे..? मार्क्स ने कहा है, अर्थ ही मूल है। धनपशुओं की ताकत उनके आर्थिक साम्राज्य की ताकत में निहित है। क्या किसान अंबानी-अडानी के साम्राज्य को डिगा पाएंगे? अंबानी-अदानी जैसे दलाल धनपशुओं ने अपने राजनैतिक एजेंट्स की बदौलत भारतीय राजसत्ता को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया है, आंदोलित उनके उत्पादों के बहिष्कार का ऐलान कर एक परिपक्व राजनैतिक समझ का परिचय दिया है। किसान संगठनों ने फूट डालकर आंदोलन को तोड़ने की सरकार की कोशिसों को नाकाम कर मुल्क को गुलाम बनाने वाले साम्राज्यवादी कानून के विरुद्ध कमर कस कर डंटे हुए हैं। आइए हम सब अपने अन्नदाता के समर्थन में जिओ सिम का बहिष्कार करें। किसानों के आंदोलन की सफलता के लिए गैर किसानों का समर्थन आवश्यक है।

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