Tuesday, December 29, 2020

मार्क्सवाद 231 (किसान आंदोलन)

 केरल की खेती का पैटर्न अलग है। धान के अलावा अन्य ज्यादातर अनाजों के लिए वह अन्य राज्यों से खरीद पर निर्भर है। चमचे और गुलाम सत्ता के होते हैं, फिरकापरस्ती की नफरत फैलाकर देशके टुकड़े करने वाला अंधभक्तों का गैंग अपनी खीझ मिटाने के लिए अपनी छवि दूसरों पर थोपने की कोशिस करता है।केरल केरल चिल्लाने वाले अंधभक्तों के जानना चाहिए कि वहां मुख्यतः फल और मसालों की खेती खेती होती है। वैसे सीपीएम और अन्य पार्टियों में बहुत गुणात्मक फर्क नहीं है, लेकिन मात्रात्मक फर्क ही उल्लेखनीय असर डालता है। केरल में फल-सब्जियों के भी न्यूनतम मूल्य निर्धारित हैं तथा केरल के किसान खुशहाल किसान हैं। केरल शिक्षा में सभी प्रदेशों से बहुत आगे है। चिलचिलाती ठंड में दिल्ली की सीमाओं पर साम्राज्यवादी, भूमंडलीय पूंजी के निर्देश पर खेती के कॉरपोरेटीकरण के विरुद्ध डटे किसानों का क्रांतिकारी दृढ़संकल्प ऐतिहासिक है। अंधभक्तों का गैंग और मृदंग मीडिया उनके बारे में कितना भी दुष्प्रचार क्यों न कर ले यह आंदोलन थमने वाला नहीं है। देश-दुनिया के तमाम कामगर उनके साथ हैं। इन बेचारों पर तरस खाना चाहिए। अब बिहार के किसानों ने बिहार की सड़कों को लाल कर दिया है जिससे मृदंग मीडिया और अंधभक्तों में बौखलाहट मच गयी है। बता दें कि किसान आंदोलन की चिन्गारी बिहार से ही उठती रही है चाहे वह चंपारण स् शुरू किसान विद्रोह हो या सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हो, 1960 के दशक का मुसहरी किसान विद्रोह हो या 1980 के दशक का केंद्रीय बिहार (भोजपुर) का किसान आंदोलन। अंधभक्तों के गिरोह और मृदंग मीडिया को यह भी जान लेना चाहिए कि बिहार के इन ऐतिहासिक क्रांतिकारी किसान आंदोलनों का झंडा लाल ही रहा है। क्रांतिकारी किसानों को जयभीम-लाल सलाम। इंकिलाब जिंदाबाद।

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