Sunday, September 10, 2017

मार्क्सवाद 77 (वर्ग-जाति)

Mahendra Yadav उनके नारों और पर्चों से लगता है कि बापसा एक नवब्राह्मणवादी संगठन है और न ही अंबेडकर फूले की विरासत की एकमात्र दावेदार। इनका हमला ब्राह्मणवाद और कॉरपोरेटवाद से ज्यादा वामपंथ पर होता है।जिसके कई सदस्य मेरे पृय मित्र हैं। हमारे अंतविरोध मित्रवत होने चाहिए शत्रुवत नहीं। जिसे भगवा-लाल एक दिखे वह पेरियार या फूले का सच्चा अनुयायी नहीं हो सकता न ही अंबेडकर की विरासत का सच्चा दावेदार। अस्मिता की राजनीति (आंदोलन नहीं) अपनी ऐतिहासिक भूमिका पूरी कर चुकी है। अब बड़े से बड़े जातिवादी कि हिम्मत नहीं है कि कहे कि वह जात-पात में यकीन करता है, खान-पान की वर्जना का कोई अन्य बहाना करेगा,उसी तरह जैसे किसी बाप की हिम्मत नहीं है कि खुलकर कहे कि वह बोटा-बेटी में भेद करता है, एक बेटे के लिए 5 बेटियां भले ही पैदा कर ले। यह क्रमश: जातिविरोधी और स्त्रीवादी विचारधाराओं की सैद्धांतिक जीत है। इसे व्यवहारिक रूप देने के लिए अस्मिता की राजनीति से ऊपर उठ सामाजिक चेतना के जनवादीकरण की जरूरत है। मेरे छात्रजीवन से अब तक दलित प्रज्ञा, चेतना और दावेदारी तथा स्त्री चेतना, प्रज्ञा और दावेदारी का रथ इतना आगे बढ़ चुका है कि इसे रोकना नामुमकिन है। शासक वर्ग इसे रोकने में अक्षम, इसे अपने हित में ढालने की कोशिस कर रहा है, जैसे बुद्ध के विचारों को रोकने में अक्षम ब्राह्मणवाद ने उनको अवतार बना दिया। अब दलित और नारी चेतना के जनवादीकरण की जरूरत है। जयभीम-लालसलाम को सैद्धांतिक और व्यवहारिक परिभाषा देने की जरूरत है। सामाजिक और आर्थिक न्याय के संघर्षों की एकता की जरूरत है। जहां भी सामाजिक न्याय का संघर्ष आर्थिक न्याय के संघर्ष से जुड़ता है कुछ सफलता मिलती है, चाहे पंजाब के दलितों का जमीन आंदोलन हो या गुजरात का। परिवर्तन का एक ही रास्ता है मार्क्सवाद। यार आप मुझे फंसा देते हैं। 2 लाइन सोचा था, पूरा लेख हो गया। यदि भारत में यूरोप की तरह जनतांत्रिक-सामाजिक क्रांति हुई होती या मार्क्सवाद को अपना वैचारिक आधार मानने वाली कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद को मॉडल न मानकर, विज्ञान के रूप में इसके आधार पर अपनी परिस्थितियों के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर वर्ग-जाति के अंतःसंबंधों की समीक्षा से निकले निष्कर्षों के अनुसार नीतियां बनाते तो अस्मिता राजनीति की न गुंजाइश होती न ही जरूरत। लेकिन अतीत सुधारा नहीं जा सकता है उसके अनुभवों की सीख से एक नए भविष्य की शुरुआत की जा सकती है। जबतक जातिवाद रहेगा, जातीय अस्मिता का रेखांन उसका एक लक्षण है, जब तक जातियां रहेंगी, तबतक हिंदू रहेगा और जबतक हिदू रहेगा, हिंदुत्व फासिज्म को उर्वर जमीन मिलती रहेगी। इस अंधे समय में वक्त का तकाज़ा है कि सभी परिवर्तनकामी शक्तियां पार्टी लाइन और अस्मिता की राजनीति से ऊपर उठकर खुले मन से संवाद करें और जयभीम-लाल सलाम नारे की प्रासंगिकता का आधार तथा एकता के रास्ते बनाएं।

ईशनिंदा

ईशनिंदा


ईश मिश्र

मित्र महेंद्र यादव कितनी चतुराई से आपने कृष्ण-सुदामा की नकली कहानी सुनाकर एक भोले-भाले ब्राह्मण को झासे में फंसाकर उस वाले ईश के बारे में अशोभनीय बातें अनजाने में कहवा लिया, अब धमकी भी दे रहे हैं कि ईशनिंदा में ईश मिश्र ही फंसेंगे। मैं तो भावनाओं में बहकर कुछ ज्यादा ही उद्वेग में हां में हां मिला दिया। ब्राह्मण बेचारे की ‘जय हो जजमान’ कहने की आदत जो होती है। दक्षिणा दिया नहीं और कोट-कचहरी का डर दिखाने लगे। कितनी अकल लगाया और हमारे बचपन में मूर्ख सवर्ण अहिरों की अकल को लेकर चुटकुले सुनाते थे, अपनी छिपी प्रतिभा से अनभिज्ञ यादव जी भी अपने मजाक की हंसी में शामिल हो जाते थे। जमींदार उन्हीं की लाठी के बल पर बकैती करते थे और उन्ही का मजाक उड़ाते थे। वे इतने बेअक्ल थे कि समझ नहीं सकते थे मामला अक्ल की कमी का नहीं, जमीन और शिक्षा की कमी का था। इन्हें सुपर-बेस स्ट्रक्चरों के रिश्ते का भान नहीं था। मैं कहां ईशनिंदा के चक्कर से निकल कर बचपन के चक्कर में फंस गया। सुना है ईश निंदा के मामले में जमानत भी नहीं होती। लेकिन अब तो कोह दिया। तोड़कर दुनिया की दीवार, साजना कर लो मुझसे प्यार जो होगा देखा जाएगा। वैसे तो दो ईशों के मामले में कोट-कचहरी का क्या काम? लेकिन धरती पर उसके आदमियों को यह नहीं मालुम कि दो बड़ों की बात में छोटों को नहीं बोलना चाहिए और बैकुंठ में मेरे कोई आदमी (देवता) हैं, नहीं। वह हमेशा ही गैरबराबरी की लड़ाई लड़ता है। उसके अंदर इतना बड़प्पन नहीं है कि एक अदना से इंसान के मुंह से उसके बारे में कुछ निकल ही गया तो माफ कर दे या नजर-अंदाज कर दे, न कि धरती के अपने बंदों से कोट-कचहरी करवाए या गोली मरवा दे! मैं ते इंसान हूं और सारे गाली-गलौच वालों को माफ कर देता हूं, फेसबुक पर गाली ज्यादा वैदिक (वैदिक हिंसा हिसा न भवति) हो जाती है तो इसके रचइता को ब्लॉक कर देता हूं। अगर वाकई किसी बैकुंठ में वाकई कोई और ईश है तो उसे अपने धरती के इक्जीक्यटिव ऑफिसर्स को समझाना चाहिए। और नहीं है तो कोट कचहरी क्यों? खैर तुलसी बाबा कह ही गए हैं समरथ को नहिं दोष गोसांई।
अगर मामला कोट कचहरी तक पहुंचा पहले तो आत्म-निंदा की गोली दूंगा। मैं हाड़-मांस का वास्तविक ईश हूं। फर्क बस इतना है कि वह भगवान है और मैं इंसान। इंसानों से गलतीयां होती रहती हैं और अगर कोई गलती निंदनीय लगे तो मान लेना चाहिए। भगवानों का पता नहीं। वैसे भी भगवानों में आत्मालोचना का प्रचलन कभी नहीं रहा। ईशनंदा मैं आत्मालोचना के रूप में करता हूं, हो सकता है कभी मुंह से ईश का कोई पर्याय भी मुंह से निकल गया हो। मेरे लिए ईश-निंदा का मतलब आत्म-निंदा है।

अगर अगर यह गोली काम न कर पाई तो अध्यात्म के प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग करूंगा, एक पहुंचे हुए अघोड़ी के रूप में ईश्वर से सीधे संवाद की नौटंकी। धरती और बैकुंठ के ईशों में समागम कोई नई बात तो है नहीं। इतिहास तमाम जाने-माने बाबाओं के पूजनीय पाखंडों से भरा पड़ा है। एक देवरहा बाबा था वह जमीन पर पैर नहीं रखता था, वाहन से सीधे मचान पर। सिर पर हाथ नहीं पैर रखकर आशिर्वाद देता था। इंदिरा गांधी की आशिर्वाद लेती तश्वीर काफी चर्चित हुई थी। उनकी उम्र 500 साल से ज्यादा बताई जाती थी। एक बार उनके एक भक्त ने कहा कि उन्हें भीष्म पितामह की तरह इच्छा-मृत्यु का वरदान है, उनके चेलों का कहना था कि बाबा का ईश से नियमित संवाद होता रहता था। किसी की मुलाकात उनके खास चेले से हुई जिसने बताया कि बाबा की सही उम्र तो पता नहीं, वह उनके साथ 200 साल से ही था। यह सब इसलिए कह रहा हूं कि थोड़ा अभिनय ठीक हो और आप जैसे 10-20 पढ़े-लिखे, प्रखरबुद्धि, तर्कशील नास्तिक चेले-चेलियों की अभिनय के लिए राजी हो जाएं जो चतुराई से मेरी उस ईश से समागम और संवाद की कहानियां गढ़-गढ़ इतने प्रामाणिक ढंग से प्रचारित करें कि गोएबेल्सवा भी फेल हो जाए। इसमें वे रजत शर्मा के चमत्कारी चैनल की मदद ले सकते हैं। अरे जब खुद को घोषित करने से कृष्ण की छोड़ो, रजनीश, साईबाबा, हरमीत सिंह जैसे चीकट भी भगवान मान लिए जाते हैं तो ईश और ईश के समागम और संवाद की कहानी ढंग से गढ़ने पर मान ही ली जाएगी। आप जानते हैं कि भारत भक्तिभाव प्रधान देश है, जहां प्रभु अवतार भी लेता है, चमत्कार भी करता है। अदृश्य रहकर अतिप्रिय भक्तों से संवाद भी करता है तथा वरदान तो देता ही है, बस ज्ञान नहीं देता।
हां आप लोग यानि ‘परमपूज्य संत शिरोमणि ईश बाबा’ के ‘निष्ठावान’ चेलों को एक प्रामाणिक नास्तिक के संतगीरी में संक्रमण की प्रामाणिक कहानियां गढ़नी-फैलानी पड़ेंगी। गढ़ने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा क्योंकि भारत एक अफवाह2 | Pageपसंद करिश्मों की प्रतीक्षा में रहने वाला देश है। करिश्माई और सनसनीखेज कहानी तेजी से फैलती हैं। सोसल मीडिया जिंदाबाद। एक एपीसोड की पटकथा की कहानी मैं अभी बता देता हूं आप लोग इसमें मनमाफिक, परिस्थिति अनुसार सुधार कर सते हैं।

“संतसिरोमणि ईशबाबा की महिमा अपरंपार, दया, करुणा और समानुभाव के अलावा समदर्शी भी हैं। (पीछे से नारा परमपूज्य संतशिरोमणि ईश बाबा की जय।) धन्य हैं प्रभु, भक्तों पर ही नहीं, भक्तिभाव की संभावना वाले ईश मिश्र जैसे जघन्य, दुष्ट नास्तिकों के साथ भी समागम और संवाद की कृपा करते हैं जो मार्क्स नामक एक दुष्ट प्रेतात्मा की चपेट में आकर, पूर्वजों की पुनीत परंपराओं और अपनी जड़ों से कटकर नास्तिक और वामी-कौमी हो गया था। सौभाग्य ईश नाम के बावजूद, अदकचरे ज्ञान के अहंकार में परमपिता और उनके अवतारों के बारे में अनाप-सनाप बकता रहता था। (परमपूज्य, संत शिरोमणि ईश बाबा की जय।) धरती के भक्त नास्तिकों को वामी-कौमी कह कर लट्ठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं वे फर्जी हैं, वे उस ईश के भक्त हो ही नहीं सकते जो बात-बात पर विश्वविधाता के लिए ऊलजलूल बोलने वाले जघन्य, घनघोर नास्तिक ईश से समागम और संवाद कर हृदय परिवर्तन कर एक दुष्ट भौतिकवादी को एक पहुंचा हुआ आध्यात्मिक गुरू बना दिया। (परमपूज्य ......... )”।

भक्तों की भीड़ और प्रवचन के प्रपंच और शब्दाडंबर से एक नास्तिक जल्दी ही जनमन में एक पहुंचा हुआ संत बन जाएगा। चिंता मत करिए एक बार मामला खत्म हुआ फिर नौटंकी बंद कर जमात-ए-नास्तिक में हम सब दुबारा सक्रिय हो जाएंगे और और अनुभवजन्य प्रामाणिकता से सबको बताएंगे किस तरह लोग बाबा-माइयों के फरेब में फंसते हैं।

अगर कोट-कचहरी की नौबत आई तो एक पहुंचे हुए औघड़ संत के रूप में पूरी तैयारी के साथ जाऊंगा, खोपड़ी, माथा, गर्दन सब जगह भभूत लपेट कर, मुरली मनोहर जोशी की तरह गले में 3-4 रुद्राक्ष की मालाएं, हाथ में जपने वाली माला। अभिनय में निपुण 12-14 नकली भक्तों के साथ नकली संत बन जोर-जोर से एकालाप करते अदालत में पहुंचूंगा, "कितने निर्दयी हो ऊपर वाले ईश भाई, हमनामी का भी ख्याल नहीं रखा औरे अपने इन फर्जी भक्तों से मेरे नाम अपनी निंदा का गैरजमानती वारंट निकलवा दिया?.............”। चेलों के अलावा और भी लोग रास्ते में साथ हो लेंगे कुछ के लगेगा कि वाकई भगवान से संवाद कर रहा हूं, कुछ अपने आप बड़बड़ाने वाला पागल समझ साथ हो लेंगे। उस ईश कि बात तो सिर्फ यही ईश सुनेगा इसकी सब। लेकिन उससे अपनी नजदीकी दिखाने के लिए बाकी भी लगने से परे उसे मेरी ही तरह उस ईस की अनकही बातें भक्तिभाव से सुनेंगे। नाम पुकारते ही चेलों की जयकार के बीच अदालत में घुसते ही, बैकुंठ वाले कल्पित ईश से काल्पनिक संवाद शुरू कर दूंगा, ' देखो भई ऊपर वाले ईश! तुम्हीं ने तुसली बाबा से लिखवाया है कि ई कलियुग है और कलियुग में सब उल्टा होगा”. तभी सरकारी वकील कुछ सवाल के लिए टोंकेगा तो आप जैसा कोई चेला उसे डांट देगा कि संत शिरोमणि अभी बैकुंठ में हॉट लाइन पर बात कर रहे हैं, मुस्किल से मिलपाती है लाइन, नेटवर्क भी बहुत बिजी रहता है। मैं देवताओं की स्टाइल में हाथ उठाकर चेले को शांत रहने का इशारा कर पर काल्पनिक संवाद जारी रखते हुए, “तुम तो भाग्यविधाता हो, हम का जानते थे कि अहिरों को आप इतनी अकल दे देंगे कि एक भोले-भाले बाभन को फंसाकर आपके खिलाफ भड़का देंगे?' पॉज .. 'अरे ई का कह रहे हैं, बैकुंठ में कहां से असुर पहुंचकर तोड़-फोड़ कर रहे हैं? लेकिन उहां तो सुना है कि सब देवता ही .......... क्या ब्रह्माजी से सवाल-जवाब कर रहे हैं? ..... बाप रे लमछर-लमझर लाठी लेके! इंद्र महराज का दधीध की हड्डियों का बज्रास्त्र क्या हुआ? ..... क्या?? महर्षि दधीच की आत्मा बुड्ढी हो गयी और बज्रास्त्र में वह मारक शक्ति नहीं जिससे असुर संहार करते थे? हमने तो सुना था आत्माएं अजर अमर तथा सदाबहार रहती हैं? ... .. का? कलियुग में आत्माओं का भी करेक्टर बदल गया है, कई करेक्टरलेस हो गयी हैं।............ क्या? क्या?......... वह महिषासुर वाला पर्चा तो समृति इरानी जी ने माफी मांगकर प्रायश्चित के साथ संसद के पटल पर रखने का पाप किया था? .... . लेकिन जेयनयू में महिषासुर दिवस वाली बात बैकुंठ तक पहुंची कैसे? और इतनी बात से देवता परेशान हैं?........... दुर्गाजी सबेटिकल पर गयी हैं? लेकिन बतिया पहुंची कैसे? हमने तो सुना था कि धरती तथा बैकुंठ के बीच नारद कम्युनिकेसन सेवा डिफंक्ट हो गयी है? ......... ई फाइव जी क्या है? ...... अच्छा देवता लोग भी जुगाड़ में माहिर हैं। इंसानों से 1-जी.. 4-जी बनवाया और 1-4 को जोड़कर 5 कर लिया।..... का? ब्रह्मा जी से धरती की असमानता का हिसाब मांग रहा है?............ नहीं चिंता न करो ब्रह्माजी ब्रह्मज्ञान से कोई तरीका निकाल लेंगे।............. ई लो, हम तो अपना रोना सुनाने के लिए मुश्किल से नेटवर्क कनेक्ट किया कि यहां तुम्हारे प्रतिनिधि बनकर कुछ लोग जीना हराम किए हैं और तुम बैकुंठ की विपदा सुनाने लगे। हमने तो सोचा था बैकुंठ में सुख शांति होगी।............ कोई बात नहीं मेरी चिंता मत करिए। तुम्हारी प्राथमिकता बैकुंठ की सुरक्षा होनी चाहिए, मैं अपना कुछ जुगाड़ कर लूंगा। लेकिन इंद्रजी ने तो सारे असुरों का बध कर दिया था, फिर कहां से बैकुंठ में आ टपके? ....................... ई साइबर यान? यातायात तकनीक??? यहां तो साइबर यान पर आवाज ही यात्रा करती है, ऊ सब सशरीर बैकुंठ पहुंच गए! असुरवे इतने तेज कैसे हो गए? ................ अब संकट में हमनाम की मदद सानी फर्ज है, वह हमनाम भगवान ही क्यों न हो? .............. चिंता न करो कुछ जुगाड़ कर धरती पर आ जाना, पहले भी तो ऐसे ही आते रहे हो। कोई बात नहीं.......... रहने-खाने तथा अस्तित्व की गोपनीयता का इंतजाम हम पर छोड़ दो। पहले जब-जब आए तो पता चल गया, द्वापर में तो तुम्ही ने अपने ईश होने की घोषणा की थी तथा चक्र-सुदर्शन के भय से सब ने मान भी लिया था।............ यहां कुछ न कुछ अंडरग्राउंड रहने की जुगाड़ हो जाएगी। ........ उसकी चिंता मत करो, मैं भी तो आपातकाल में इलाहाबाद से जेयनयू आकर खुलेआम अंडरग्राउंड रहता था। ......” ओह! ई बैकुंठ के कम्युनिकेसन सर्विस प्रोवाइडर्स भी बेईमानी करते हैं साल्ले, धरती वालों की ही तरह नेटवर्क गायब कर दिया, अब उस वाले ईश को दोबारा टेलीपैथिक कॉल करना पड़ेगा...?’

और, कचहरी में किसी रामदेमदेवी आसन में बैठ कर आंख बंद ध्यान में खो जाऊंगा. कनखियों से देखता रहूंगा कि जज के अलावा कितने वकील और कचहरी में मौजूद कितने लोग श्रद्धा से ओत-प्रोत, भक्ति भाव से मेरी बकवास सुन रहे हैं। भक्त तो भक्ति में रम जाएंगे लेकिन कहां कुछ नास्तिक न हों, बहुत से तो वर्ग की एकजुटता के लिए मेरे पाखंड को सच दिखाने की कोशिस करेंगे। लेकिन नास्तिकों में गद्दार हो सकते हैं। पोल खुल ही गया तो जो होगा देखा जाएगा।
वैसे तो इस कमेंट पर भी समाज की समरसता तोड़ने का आरोप लग सकता है। 25-26 साल पहले फ्रीसांसिंग (बेरोजगारी) के दिनों की बात है। किसी बात पर मेरी पत्नी ने कहा कि भगवान के बारे में उल्टा-सीधा बोलते हो तभी तुम्हारे साथ गड़बड़ होता है। मैंने कहा कि अगर वह इतना गिर सकता है कि मेरे जैसे अदना से आदमी से बदला लेने आ सकता है तो उसकी ऐसी-तैसी जो करना हो कर ले। वह तो नहीं लेकिन उसके नाम पर उसके भक्त कुछ-कुछ पंगे लेते रहते हैं। लेकिन जब खुदाओं का ख़ौफ खत्म हो जाए तो उससे उसके नाखुदा खुद डरने लगेंगे, डरकर हत्या भी कर सकते हैं। लेकिन जब खुदा का खौफ नहीं तो मौत का खौफ क्या?

इसे कहते हैं ऐब्सर्ड नाटक। न कोई ईश निंदा का केस न बाबागीरी की औकात। फालतू में 2000 शब्द बर्बाद कर दिया। महेंद्र यादव ने मजाक में कहा ईश निंदा में ईश मिश्र फंसेंगे, ईशनिंदा में तो नहीं फंसा, ऐब्सर्ड लेखन में फंस गया, जबकि और काम करने थे जरूरी-जरूरी। काश मैं नास्तिक न होता और शाप देने की ब्राह्मणों की शक्ति का क्षय न हुआ होता तो मैं इन्हें शाप देने की सोचता, लेकिन अब यह सोचने का क्या फायदा?
10.09.2017

Thursday, September 7, 2017

कविता का क

जिन्हें कविता का क न मालुम हो
वे फैसलाकुन समीक्षा करने लगे हैं
फांदते थे जो कल तक दीवार
काज़ी-ए-वक़्त बन बैठे हैं
जो रहे हैं सदा किसी-न-किसी शह के गुलाम
आजादी की परिभाषा गढ़ने लगे हैं
बाभन से इंसान तो बन नहीं पाए
जगत्गुरु बनने निकल पड़े हैं
(ईमि: 07.09.2017)

Wednesday, September 6, 2017

जनहस्तक्षेप गौरी लंकेश की हत्या की निंदा

जनहस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान

प्रेस विज्ञप्ति
नयी दिल्ली
06 सितंबर, 2017

मानवाधिकार और नागरिक अधिकार संगठन जनहस्तक्षेप हिंदुत्ववादी ताकतों से अपने तीखे लेखन के जरिये मुकाबला करने वाली जुझारू पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की निंदा करते हुए कर्नाटक सरकार से इस अपराध में शामिल व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करता है। 

55 वर्षीया सुश्री लंकेश ने हिंदुत्ववादियों की समाज में नफरत फैलाने वाली साम्प्रदायिक गतिविधियों का जीवन भर विरोध किया। उन्हें दक्षिणपंथियों से लगातार धमकियां मिल रही थीं मगर उन्होंने दबावों के आगे घुटने टेकने के बजाय अपने साप्ताहिकलंकेश पत्रिकेके जरिये इन ताकतों के खिलाफ मुहिम जारी रखी।
जनहस्तक्षेप सुश्री लंकेश की हत्या के लिये कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की हिंदुत्ववादी संगठनों के आपराधिक कार्यकलापों पर रोक लगाने में नाकामी को जिम्मेदार मानता है। तर्कवादी लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या के दो साल बाद भी उनके कातिलों को सजा दिलाने में कर्नाटक सरकार की नाकामी की वजह से राज्य में हिंदुत्ववादी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।
दरअसल, सुश्री लंकेश के कत्ल को तर्कवादियों नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे और श्री कलबुर्गी की हत्याओं की अगली कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिये। इन हत्याओं के पीछे हिंदुत्ववादी शक्तियों की मंशा प्रगतिशील और तर्कसंगत विचारों का गला घोंट कर समाज में कूपमंडूकता, कट्टरता और फिरकापरस्ती को बढ़ावा देना है ताकि वे अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर सकें।
जनहस्तक्षेप केन्द्र तथा कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकारों से मांग करता है कि वे इन हत्याओं की जांच जल्दी-से-जल्दी पूरी कर गुनहगारों को सजा दिलाने के लिये ठोस कदम उठायें। वह मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले सभी व्यक्तियों और संगठनों से जनपक्षीय विचारों के खिलाफ इन खूनी हमलों का एकजुट होकर विरोध करने की अपील करता है।
ईश मिश्र (संयोजक), मोबाइल- 9811146846

विकास वाजपेयी (सह-संयोजक), मोबाइल- 9810275314

धर्मांधता का प्रदूषण

नहीं चाहिए हमें कोई भारत-रत्न या पद्म-भूषण या विभूषण
जो भी नाम है किसी गुमनाम मजदूर के पसीने से बने उस तमगे का
बनता है जो शह के मुजाहिदों के गले का आभूषण
मानवता के रक्त से रंजित किसी महामहिम के हाथ
मिटाना है हमें दुनिया से धर्मांधता का प्रदूषण
जिंदा रखना है गौरी-मशाल खान-कलबुर्गी-सुरातों को
फैलाना है सत्य के लिए निडर कुर्बानी की उनकी बातों को
बताना है मरती नहीं कभी गौरी लंकेश
मिशाल बन देती है जुल्म से लड़ने के निडर साहस के संदेश
समझाना है लोगों को गोरख पांडे की कविता का मर्म
कर सकें वे जिससे डरना बंद कर जालिम को डराने का सत्कर्म
निडरता से डराते रहना है जालिम को लगातार
डर से ही जिससे वह मरता रहे बार बार
मरती नहीं गौरियां मरते ने मशाल खान
मिशाल बन सहादतों सुर्ख करते हैं आसमान
नहीं चाहिए हमें भारतरत्न या पद्मविभूषण
मिटाना है हमें दुनिया से धर्मांधता का प्रदूषण


(ईमि: 06.09.2017)

Tuesday, September 5, 2017

गौरी लंकेश

तुमने मार दिया एक और विचारक
होकर भयभीत उसके विचारों से
लेकिन विचार तो मरते नहीं
इतिहास रचते हैं
गौरी लंकेश को हार्दिक श्रदधांजलि

गौरी लंकेश को नमन

तुम मारते हो जब भी कोई सुकरात
तर्क से देते हैं हम जवाब
तुम हमारे विचारों डर कर
हमारी हत्या कर देते हो
हम मरते नहीं
करते हैं तर्क से प्रतिकार
क्योंकि हम विचार हैं
विचार मरते नहीं
रचते हैं तर्कों का नया संसार
मारोगे कितने सुरात-गैलेलियो-गौरी लंकेश
फैलाते रहेंगे हम दुनिया में सत्य का संदेश
तुम हमसे ही नहीं इतिहास से भी डरते हो
इतना डरते हो कि पढ़ते ही नहीं
नहीं तो जानते
करते हो जब भी हत्या हमारी डराने के लिए
हम न मरते हैं न डरते हैं
मौत से बेखऔप आगे ही बढ़ते हैं
और भी बुलंद होती है तर्क की आवाज
तुम डरकर मर जाते हो
और हम विचार बन इतिहास रचते हैं
तुम बिलबिलाते हो इतिहास किसी घिनौने कीड़े की तरह
गौरी की शहादत को जय भीम-लाल सलाम
गौरियां मरती नहीं विचार बन इतिहास रचती हैं
और कब्र खोदती है धर्मांता की
जब भी हत्या करता है
कोई भी एथेंस किसी भी सुकरात की
बीज बोता है अपने विनाश का
और समा जाता है काल के गाल में
गौरी मरी नहीं जिंदा रहेगी
बनकर निर्भीकता और साहस की मिशाल
गौरी लंकेश की की कुर्बानी को विनम्र नमन।
(ईमि: 06.09.2017)