Thursday, May 2, 2024

बेतरतीब 177 (अभिव्यक्ति के खतरे)

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लक्ष्मण अपनी सामाजिक-राजनैतिक सक्रियता के चलते चर्चा में रहे और हैं, इसलिए उनका मामला चर्चा में है। लक्ष्मण एक निष्ठावान शिक्षक और प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी हैं। हिंदी विभाग ही नहीं सभी विभाग अपने-अपने ढंग के कत्लगाह ही हैं। लक्ष्मण की ही तरह ढेरों युवक-युवतियां सालों-साल जी-जान लगाकर पढ़ाने के बाद निकाल दिए गए तथा उनकी जगह झंडेवालान-संस्तुति वाले अधिकतर संदिग्ध योग्यता वाले उम्मीदवारों को रख लिया गया। अगर यह सरकार चली भी गयी तब भी ये झंडेवालान 'प्रोफेसर' तो दशकों देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे। लक्ष्मण की किताब पढ़ी जानी चाहिए, मैं भी शीघ्र ही पढ़ने की कोशिश करूंगा। लक्ष्मण विरले अस्थाई शिक्षक हैं जो तदर्थ स्थिति के बावजूद अभिव्यक्ति के खतरे उठाते रहे हैं। कई दशक पहले ऐसे ही मुझे एक अस्थाई पद के स्थाई होने की प्रक्रिया में एक इंटरविव के जरिए निकाल दिया गया था। इसके लिए विवि के तत्कालीन विभागाध्यक्ष ने सेलेक्टन कमेटी में आरोप लगाया था कि मैंने उन्हें मारने की धमकी दी थी। पता चलने पर जब पूछने गया तो आंय-बांय करने लगा था। खैर नौकरी से निकाले जाने के बाद कॉलेज के सहानुभूतिक विभागाध्यक्ष ने कहा था कि आमतौर पर अस्थाई रहते हुए लोग अपने विचार व्यक्त करने से बचते हैं, पर शायद यह बात आपके व्यक्तित्व में नहीं है। मैंने प्रशंसा के लिए उनका आभार व्यक्त किया था । उच्च शिक्षा में मठाधीशी (गॉड फादरी प्रथा) का विनाश हो। मैं तो नास्तिक हूं, जब गडवै नहीं है तो गॉडफदरवा कहां से होगा?

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