Monday, December 18, 2023

शिक्षा और ज्ञान 334 (मर्दवाद)

 सामाजिक विकास के हर चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का स्तर और स्वरूप विकसित होता है। मर्दवादी समाज की सामाजिक चेतना पूरे समाज को प्रभावित करती है।मर्दवाद एक विचारधारा (मिथ्या चेतना) है और विचारधारा वर्चस्वशाली और अधीनस्थ (शोषक तथा शोषित) दोनों को प्रभावित करती है किसी लड़की को बेटा कहने वाला ही नहीं ऐसा साबाशी देने के लिए करता है, बल्कि वह लड़की भी उसे साबाशी ही समझती है। बाबू जी ही नहीं समझते थे कि माई को उनकी हर बात माननी चाहिए बल्कि माई भी उनकी आवाज सुनते ही अपना कर्तव्य समझ खाना छोड़कर भी दौड़ पड़ती थीं। मेरी बेटियों को कोई बेटा कह देता है तो अकड़कर जवाब देती हैं, "Excuse me, I don't take it as a complement". मैं कभी किसी बेटी को बेटा कहकर complement नहीं देता। किसी लड़के को बेटी कह दो तो सब हंसने लगते हैं। मैं तो 5 साल से कम था बड़े बाल के चलते अनजान लोग बेटी कह देते थे, एक पबार इतना गुस्सा आया कि मैंने प्रमाण के साथ प्रतिवाद किया कि मैं बेटी नहीं बेटा हूं। मेरी मुंडन 5वें साल में हुई थी। अब इतने छोटे के दिमाग में कहां से आता है कि बेटे की बजाय बेटी कहलाना बुरी बात होती है। सामाजिक चेतना का प्रभाव। लड़कियां शादी के बाद पति का सरनेम ले लेती हैं। स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी के अग्रगामी अभियान के साथ स्थितियां बदल रही हैं। बहुत सी लड़कियां अपना सरनेम नहीं बदलतीं। कुछ स्त्री दावेदारी का आधा रास्ता तय करती हैं, अपना पुराना सरनेम छोड़े बिना पति का सरनेम भी लगा लेती हैं। कुछ स्त्री प्रधानन खुद प्रधानी करने लगी हैं धीरे धीरे प्रधानपति की प्रणाली समाप्त हो जाएगी। क्रमिक-मात्रात्मक विकास परिपक्व होकर क्रांतिकारी गुणात्मक विकास में तब्दील होता है। स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान के चलते आज कोई भी बाप सार्वजनिक रूप से नहीं कहता कि वह बेटी-बेटा में फर्क करता है, एक बेटा पैदा करने के लिए 4-5 बेटियां भले ही पैदा कर ले। यह स्त्रीवाद की सैद्धांतिक विजय है। विचारधाराके रूप में मर्दवाद के उन्मूलन के साथ यह विजय संपूर्ण होगी। जिसका भी अस्तित्व है, उसका अंत निश्चित है, मर्दवाद अपवाद नहीं है। जो भी लड़का मां-बाप कीतीसरी-चौथी-पांचवी संतान हो तो 99.99 फीसदी मामलों में उससे बड़ी सब बहनें होंगी। बाकी बाद में।


19.12.2021

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