स्कूल में किसी क्लास के कोर्स में भगवती चरण वर्माकी कहानी ' दो बांके' पढ़ा था और बांको का चरित्र आज भी दिमाग में सजीव है। लाइब्रेरी में कुछ विलंबित काम पूरा करने की कोशिश कर गहा हूं। मेज पर भगवती चरण वर्मा की कहानियों का एक संकलन दिख गया पलटनें के लिए उठाया और पहली पलट में दो बांके का पेज खुल गया और शुरू से अंत तक पूरी कहानी पढ़ गया, लगा पहली बार पढ़ रहा हूं। सभी रचनाएं समकालिक होती हैं, महान रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं, जितनी बार पढ़िे पहली बार लगता है। अच्छी कहानी शब्दों से परिघटनाओं के विजुअल्स बनाती है।
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