मैक्यावली कुशल (समझदार) राजाओं (प्रिंसों) को सलाह के रूप में लिखी गयी 'प्रिंस' में लिखते हैं कि विजय से राज्य स्थापित करने के साथ प्रिंस को यह नहीं समझना चाहिए कि उसका काम खत्म हुआ है, बल्कि शुरू हुआ है। राज्य प्राप्त करना तो पहला पड़ाव ही है, यह रानीति का एक उद्देश्य है। अन्य दो उद्देश्य हैं सत्ता को बरकरार रखना और बढ़ाना। पहले उद्देश्य की प्राप्ति के बाद पहला काम है, सत्ता प्राप्त करने में जो सहायक रहे हैं उनके साथ क्या करना है। 2017 में एक पत्रिका के लिए, 'नव उदारवदी प्रिंस' शीर्षक से एक लंबा लेख लिखा था, जिस अंक के लिए लिखना था, वह डेड लाइन छूट गयी (समय पर पूरा नहीं कर सका। उसके बाद सोचाअगले अंक के लिए अपडेट कर दूंगा। तब से उस पर बैठ ही नहीं पाया ।
मास्टरों की बुरी आदत होती है (जनरलाइजेसन नहीं) क टेक्स्ट के बीच में फुटनोट चेंप देते हैं। तो नए प्रिंस को सबसे सबसे ज्यादा खतरा अपने करीबियों से होता है। सबसे पहले उनको दरकिनार कर देना चाहिए। उस जमाने में (मैक्यवली के अनुसार) दरकिनार करने के लिए धोखे से हत्या भी जायज तरीका था। जनतंत्र में समझदार प्रिंस इतने क्रूर नहीं होतेष उन्हें दरकिानर करने के बहुत से हाईटेक जनतांत्रिक तरीके हैं। क्रांति (विजय) मे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बड़ा हिस्सा मांगते हैं। दरबार में फर्सी लगाते समय उन्हे लग सकता है कि यह भी तो मेरे जैसा ही है थोड़ा चीजें अलगहोतीं तो मेरी जगह वह होता और वह उसे फर्सी लगा रहा होता। सहायकों में दूसरी कैटेगरी है पांचवे कॉलम की यानि दुश्मन खेमे के सहायकों की। वे अपने को किंगमेकर समझ रहे होते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें सबसे बड़ा हिस्सा मिलना चाहिए। ऐसे लोगों को पूरी तरह नजरअंदाज करने की सलाह देता है, इन्हें कुछ दानदक्षिणा देकर 'खुश' कर देना चाहिए। दरबार में जहां भी जो भी जगह मिल जाए या नभी मिले, उन्हें उससे ही खुश होना पड़ेगा। प्रिंस की कृपा स्वीकार करने के अलावा के अलावा उनके पास कोई रास्ता ही नहीं होता। अपने पुराने राज्य के लोग उन्हें गद्दार समझते हैं और नए राज्य के लिए वे नए होते हैं।बाकी, बाद में। 2017 का लेख जल्दी ही अपडेट करने की कोशिश करूंगा।
मेरा उक्त लेख तो 2017 उप्र चुनाव के पहले का है, उसे समय मिलने पर अुपडेट करके संपादित करने की कोशिस करूंगा। यह लेख मैक्यावली पर है, मोदी पर नहीं। कहावत की भाषा में, 1513 में लिखी हनुमान चालिसा के साइज (लगभग 100पेज) की किताब, प्रिंस ने पूरे यूरोप में तहलकामच गया नाटककार उसे खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने लगे। कई राज्यों में फ्रिंस पढ़ना नहीं उसे रखना भी दंडनीय अपराध था।
ReplyDeleteवह न तो ईश्वर या धर्म की आलोचना कर रहा था, न ही किसी शैतान की प्रशंसा। वह इनसे भी बहुतबुरा कर रहा था, वह राजनैतिक हकीकत (परिघटनाओं) को बिना लाग-लपेट के पेश कर रहा था।
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