Saturday, February 18, 2023

मार्क्सवाद 280 (सनातन)

 1. गाली-गलौच और अपशब्दों का प्रयोग तो धर्मांध, अंधभक्त करता है, मैं तो नास्तिक हूं और नास्तिक विवेकसम्मत तथ्य-तर्कों की बात करता है।

2. अनादि-अनंत तो केवल परिवर्तन है, बाकी जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है। यदि मनुष्यता सनातन है तब तो मनुष्यता किसी एक भूखंड में सीमित नहीं है और फिर तो पूरी दुनिया ही सनातन हुई!! धर्मांधता या सांप्रदायिक नफरत की अमानवीयता भी किसी एक भूखंड में नहीं सीमित है।
 
3. मार्क्स कोई त्रिकालदर्शी भगवान नहीं थे बल्कि एक अद्वितीय प्रतिभा और अदम्य मानवीय सरोकार के इंसान थे तथा तथ्यात्मक अध्ययन के आधार पर इतिहास की विवेचना किया है और अन्यायपूर्ण, शोषण पर आधारित समाज को बदलकर एक समतामूलक सामूहिकतावादी समाज के निर्माण का आह्वान किया है। सही ककह रहे हैं, उद्पादन प्रणालियों के आधार पर ऐतिहासिक खंडों का उनका निर्धारण यूरोपीय समाज के अध्ययन पर आधारित है, इसीलिए जब उन्होंने भारत का अध्ययन करना शुरू किया तो पाया कि यहां की उत्पादव पद्धति उनके यूरोप के अध्ययन के निष्कर्षों में नहीं समाहित हो पातीं और उन्होंने इसके लिए नयी अवधारणा की रचना की-एसियाटिक मोड ऑफ प्रोडक्सन।  

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