स्त्री और पुरुष दोनों ही होते हैं एक जैसे इन्सान
संरचनात्मक जीववैज्ञानिक फर्क के साथफर्क को असमानता के रूप में परिभाषित करके
और गोल- मटोल तर्क के इस्तेमाल से
उसी परिभाषा के जरिए
आसमानता को प्रमाणित करने वाले दार्शनिकों के
पदचिन्हों पर चलते हुए
पुरुषों के स्वघोषित प्रवक्ताओं ने
रच डाला पुरुष श्रेष्ठता की मर्दवादी विचारधारा
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