Sunday, February 3, 2019

मार्क्सवाद 165 (क्रांति का अगला दौर)



मुझे लगता है कि मार्क्सवादी सिद्धांतों के प्रयोग पर रूसी क्रांति के साथ शुरू हुआ क्रांति-प्रतिक्रांति का दौर सोवियतसंघ के पतन के साथ समाप्त हो गया। नये दौर में विभ्रम और गुत्थियां होती हैं, ऑक्यूपाई आंदोलन, फ्रांस में मजदूर-छात्रों के आंदोलन, जेयनयू आंदोलन, दलितों के जमीन आंदोलन आदि क्रांति के नए दौर के पूर्वकथ्य लगते हैं। अनजाने में ही साइबर क्रांति के साथ एक नए इंटरनेसनल की आभासी रूपरेखा बन रही है। मार्क्स का आकलन था कि क्रांति विकसित पूंजीवादी गेश से शुरू होगी, लेकिन क्रांतिकारी परिस्थितियां बनी एक अतिपिछड़े पूंजीवादी देश में और पूंजीवाजद के विकास की जिम्मेदारी क्रांतिकारियों पर ही पड़ी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। यूरोप और अमेरिका में औद्योगिक पूंजीवाद के विकास का इतिहास 17 वीं सदी खत्म होते होते शुरू हो जाता है। सोवियत संघ में सही मायने में औद्योगिक पूंजी का विकास 1920 के दशक में शुरू होता है और 2 दशक से कम समय में सोवियत संघ दुनिया के सबसे विकसित पूंजीवादी देश के बराबर की आर्थिक और सैनिक शक्ति बन जाता है। यह होता है फर्क जनोंमुख नियोजित उद्पादन में और निजी स्वामित्व पर आधारित लाभोंमुख, अराजक उत्पादन में। मुझे लगता है क्रांति के अगले चरण के केंद्र विकसित पूंजीवादी देश होंगे। भारत में भी क्रांतिकारी परिस्थितियों के बनने के लक्षण तीब्र हैं, जरूरत सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों की द्वंद्वात्मक एकता की है।

1970 के दशक में हम लोग दीवारों पर '70 का दशक मुक्ति का दशक' के नारे लिख रहे थे और उम्मीद कर रहे थे और खुशफहमी में थे कि शताब्दी का अंत होते होते दुनिया के ज्यादातर देशों में क्रांतिकारी परिस्थितियां बनेगी और पूंजीवादी की जगह जनवादी संविधान की संविधान सभाएं गठित होंगी। तबसे ऐतिहासिक परिघटनाओं ने यू-टर्न ले लिया है और पूंजीवादी संविधान की रक्षा कीजरूरत पड़ गयी है। आज वामपंथ के कामकाज की व्याख्या के साथ बदलाव की जरूरत ज्यादा सिद्दत से महसूस हो रही है। 1902 के लेनिन के पैंफलेट 'क्या किया जाना चाहिए' की भी यीद आ रही है जिसमें उन्होंने मजदूरों की मार्क्सवादी राजनैतिक शिक्षा केलिए एक पार्टी की जरूरत पर जोर दिया था। जिसके बाद सोसल डेमोक्रेटिक पार्टी मेनसेविक और बालसेविक में बंट गयी थी। कम्युनिस्ट पार्टियों ने राजनैतिक शिक्षा की जिम्मेदारी छोड़ दी है। जरूरत आज की ठोस परिस्थितियों मार्क्सवाद की व्याख्या तथा उसकी शिक्षा के लिए एक संगठन की जरूरत है।

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