धन्यवाद साथी। दिसंबरमें हृदयाघात के बाद कुछ लिखा नहीं, यह पुराना लेख था। अब दुबारा लिखना शुरू करना है। बहुजन शोषित जातियों की अस्मितावादी राजनीति की अपनी ऐतिहासिक भूमिका थी, जो पूरी हो चुकी। (मुझे ऐसा लगता है।)अब जरूरत दलित चेतना के जनवादीकरण की है जिससे वे समाजवादी क्रांति की स्वाभाविक शक्ति की अपनी स्वाभाविक भूमिका निभा सकें। नाम के पीछे का मिश्र तो जीववैज्ञानिक दुर्धटना का परिणाम है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। लखनऊ में मेरी जरूरत निकले तो आभारी रहूंगा। उम्र के साथ बेचैनी बढ़ रही है।
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