इलाहाबाद विवि का गौरव की वापसी कोचिंग से नहीं वहां के सर्जनात्मक परिवेश के पुनर्निमाण से संभव है, वह परिवेश जिसने फिराक, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, बच्चन, मोहन राकेश, डॉ. रघुवंश, दूधनाथ सिंह, मेधनाथ शाहा .... पैदा किया। छात्रों के एक समूह ने 2012 में युवा संवाद नाम से एक सिलसिला शुरू किया जो सिनेट हॉल की पहली सभा से आगे नहीं बढ़ा। परिवेश बिगड़ना 1970 के दशक से शुरू हुआ जब गुंडागर्दी से लोग भय खाने लगे और गुंडों का सम्मान करने लगे। चुनाव में मुझे लगता है बाहुबल की भूमिका बनी हुई है, जिसे जनबल की जनवादी राजनीति से तोड़ा जा सकता है। कभी अपनी अपनी शान और आईएस-पीसीयस की खान होने के लिए जाने जाने वालों छात्रावासों की दयनीयता देख दिल रो पड़ता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment