Wednesday, February 27, 2019

मार्क्सवाद 166 (द्वंद्वात्मक भौतिकवाद)

Suresh Srivastava जी सहमत, प्राकृतिक यथार्थ (वस्तु) ऐतिहासिक रूप से विचारके बिना अस्तित्व में रही है और ऐतिहासिक रूप से विचार वस्तु से ही निकले हैं, जिसे मैंने वस्तुओं के ऊर्ध्वाधर पतन और न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया है। फॉयरबाक पर तीसरी थेसिस में मार्क्स उनसे सहमत होते हुए लिखते हैं कि मनुष्य की चेतना भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है और बदली चेतना बदली हुई परिस्थितियों का। लेकिन परिस्थितियां अपने आप नहीं बल्कि चैतन्य मानव प्रयास से बदलती हैं। यथार्थ जड़ नहीं गतिशील है, गतिशील यथार्थ की संपूर्णता भौतिक परिस्थितियों और चेतना का या वस्तु और विचार की द्वंद्वात्मक एकता से निर्मित होती है। नीचे गिरती हुई वस्तु देखकर हम 'क्या' सवाल का जवाब दे सकते हैं, 'क्यों' और 'कैसे' सवालों का जवाब न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियमों की मदद से। इस विषय में कृपया ज्ञान-वर्धन करें।

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