एक पोस्ट पर एक कमेंट का जवाबी कमेंट:
शासक वर्गों के प्रतक्ष-अप्रत्यक्ष दलाल कम्युनिस्ट शब्द के बारे में 200 सालों से ऐसी ही बकवास दुहरा रहे हैं। मार्क्स के एक समकालीन अरजक दार्शनिक प्रूदों ने उनकी सोच का मजाक उड़ाने के लिए लिखा, 'गरीबी का दर्शन' जिसके जवाब में मार्क्स ने लिखा, 'दर्शन की गरीबी' जो एक कालजयी कृति बनी हुई है। "आर्थिकपरिस्थितियों ने लोगों को श्रमशक्ति बेचकर आजीविका चलाने वाला मजदूर बना दिया, इसलिए, अस्तित्व की परिभाषा से मजदूर तो 'अपने आप में वर्ग' हैं, लेकिन तब तक वे भीड़ बने रहते हैं जब तक वर्ग चेतना के आधार पर संगठित होकर वे 'अपने लिए वर्ग' बनते हैं "। यानि अपने आप में वर्ग को अपने लिए वर्ग में जोड़ने वाली कड़ी है, वर्ग चेतना यानि सामाजिक चेतना का जनवादीकरण। जाति, धर्म, क्षेत्र आदि आधारित मिथ्या चेतनाएं सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के रास्ते की गतिरोधक हैं, जिन्हें चकनाचूर कर मजदूर जिस दिन अपने आप के लिए एक वर्ग में संगठित होगा उस दिन क्रांति होगी और आप जैसे लंपट सर्वहारा या तो मजदूरन अपने आप के लिए वर्ग के संगठन में शामिल होंगे या दरकिनार कर दिए जाएंगे। हर बकवासवाद का एक जवाब-इंकिलाब जिंदाबाद।
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