1934 में, कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना के समय, कम्युनिस्टों और कांग्रेस सोसलिस्टों में, सामाजिक-राष्ट्रीय मुद्दों पर मतभेद लगभग नहीं के बराबर थे। अधिकारिक रूप से कम्युनिस्ट पार्टी पर पाबंदी लगी थी। कम्युनिस्ट निजी रूप से पार्टी में भरती हो सकते थे। दरअसल जनमानस या वामपंथ की की दृष्टि से यह स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर्णकाल था जब कम्युनिस्ट और सोसलिस्ट संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलन को जनोंमुख बनाने में लगे थे। सीएसपी की स्थापना के समय नंबूदरीपाद इसके सहसचिव थे। ट्रेड यूनियन और किसान आंदोलन के मोर्चों पर दोनों एक दूसरे के सहयोगी थे। हां, कुछ कम्युनिस्ट संगठन के क्रांतिकारी तत्वों को अपनी तरफ लुभाने की कोशिश में थे और अशोक मेहता, लोहिया तथा मीनू मसानी जैसे कुछ लोग टॉर्च-खुपरपी लेकर संगठन में कम्युनिस्ट कॉन्सपिरेससी की खोज कर रहे थे। 1942 में युद्ध के मुद्दे पर संयुक्त मोर्चा टूट गया। 1950 के दशक में केरल में फिर संयुक्त मोर्चा बना। 1957 में केरल की वामपंथी सरकार में सोसलिस्ट भी थे।
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