Friday, May 30, 2025

शिक्षा और ज्ञान 371 (स्वतंत्रता)

 एक पोस्ट पर कमेंटः


अपने समाज में व्याप्त सामाजिक, सास्कृतिक, आर्थिक , लैंगिक असमानताओं; सांप्रदायिक, जातिवादी पूर्वाग्रह-दुराग्रहों; धर्म, राजनीति तथा कृपापात्र (क्रोनी) पूंजीवाद के गठजोड़ से उत्पन्न विद्रूपताओं के चलते किसी दूसरे देश में रहने की संभावना तलाशना पलायनवाद है। "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?" की बात करना व्यर्थ है, सच यह है कि यह दुनिया हमें मिली हुई है, किसी दूसरी दुनिया मे आशियाना खोजने की दिमागी तसरत की बजाय, जो दुनिया मिली हुई है, उसी में रहते हुए, उसे बेहतर, अधिक वैज्ञानिक, अधिक मानवीय बनाने की कोशिशों में अपना यथासंभव योगदान देते रहना चाहिए? आर्थिक बुनियाद पर खड़ी धार्मिक-सामाजिक विद्वेष को खत्म कर उसकी जगह सौहार्द स्थापित करने की दिशा में हम अपना यथा संभव योगदान दें। मार्क्स ने लिखा है कि मनुष्य अपना इतिहास खुद बनाता है, लेकिन अपनी चुनी हुई नहीं, अतीत से विरासत में मिली परिस्थितियों में। वैसे भी देश के चंद लोग ही दूसरे देशों में पहनाह तलाश कर सकते हैं।

रूसो ने कहा है कि "मनुष्य पैदा स्वतंत्र होता है हर तरफ जंजीरों में जकड़ा होता है"। ("Man is born free and everywhere he is in chains".) वह मनुष्यों का एक ऐसा संघ बनाना चाहता है, जिसमें सब पहले जैसे स्वतंत्र हों । कहने का मतलब स्वतंत्रता प्रकृति प्रदत्त जन्मसिद्ध अधिकार है। परतंत्रताएं सामाजिक हैं। जन्म के संयोग के नाम पर थोपी गयी परतंत्रताएं अप्राकृतिक हैं और अवांछनीय। वास्तविक स्वतंत्रता के लिए धर्म, जाति, लिंह के नाम पर चस्पा की गयी परतंत्रताओं सो मुक्ति पूर्व शर्त है, मुक्ति का प्रयास हमारे हर कृत्य, हर शब्द में दिखना चाहिए।

No comments:

Post a Comment