Wednesday, May 7, 2025

शिक्षा और ज्ञान368 (सांप्रदायिकता)

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बिल्कुल सही कह रहे हैं, औपनिवेशिक काल के पहले ही शिल्प उद्योग, व्यापार और मुद्रा लगान तथा कस्बाई एवं ग्रामीण बाजार के विस्तार और सूफी एवं निर्गुण भक्ति आंदोलन से उपज रही सांस्कृतिक सामासिकता की प्रतिक्रिया में तुलसी आदि के वर्णाश्रमी पुनरुत्थानवाद और अहमद सरहिंदी के दारुलइस्लामी आंदोलन द्वारा धार्मिक विभाजन रेखा खिंचने लगी थी। 1857 के सशस्त्र क्रांते से बौखलाए औपनिवेशिक शासकों ने उपनिवेश-विरोधी आंदोलन की विचारधारा के रूप में उभरते भारतीय राष्ट्रवाद को खंडित करने के लिए इस विभाजन रेखा को बांटो-राज करो की नीति की धुरी बनाकर सांप्रदायिकता को आकार देना शुरू किया और हिंदू-मुस्लिम, दोनों प्रमुख समुदायों में उसे इसके एजेंट मिल गए। सांप्रदायिक उन्माद के रक्तपात से देश का बंटवारा हुआ जिसके घाव नासूर बन न जाने कब तक रिसते रहेंगे तथा सरहद के दोनों पार सांप्रदायिक फासीवादी राजनीति को ईंधन-पानी देते रहेंगे।

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