इमा के नाम की कहानी ज्यादा दिलचस्प है। यह जब पैदा हुई तो नाम सोचने लगा। किसी पत्रिका में यदि दो लेख छपते तो दो बाईलाइन अच्छी नहीं लगती और लिखे का मोह भी नहीं छूटता था, तो छोटे लेख के नीचे, ईश मिश्र का संक्षिप्त रूप ईमि, लिख देता। ईमि की ई को इ कर दिया और मि को मा। इमा हो गया। बाद में पता चला कि कई भाषाओं में इसके अर्थ भी हैं। जब माटी अपनी मां के पेट में थी तो इमा ने कहा कि "दीदी" के बेटी का उन्ही लोगों सा कोई अच्छा सा नाम सोचकर बताऊं। मैंने कहा तुम लोगों का नाम तो बिना सोचे रख दिया था, इसका नाम माटी रख देते हैं। उसने कहा लड़का हुआ तो ढेला? मैंने कहा था तब सोचूंगा। सोचना नहीं पड़ा, माटी ही आ गयी।
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