लोहिया-जेपी मार्का सोसलिस्टों के बारे में तुम्हारे मंतव्य से पूरी तरह सहमत होते हुए, एक तथ्यात्मक सुधार इंगित करना चाहता हूं, दूसरे विंदु में तुमने लोहिया के बारे में लिखा है, 'उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सम्मेलन में यह कहा कि यदि संघ फासिस्ट है, तो मैं भी फासिस्ट हूं।' यह बात लोहिया ने नहीं, 1975 में, आरएसएस के स्वयंसेवकों को अपरिभाषित, अमूर्त, तथाकथित संपूर्ण क्रांति के सिपाही के रूप में चिन्हित करते हुए, तथाकथित लोकनायक(जय प्रकाश नारायण) ने जनसंघ के सम्मेलन में यह कहा था कि यदि संघ फासिस्ट है, तो मैं भी फासिस्ट हूं।' 1960 के दशक में लोहिया ने अपने गैरकांग्रेसवाद की सनक और नेहरू से बराबरी करने की हीन भावना के चलते आरएसएस के विचारक दीनदयाल उपाध्याय से राजनैतिक समझौता कर आरएसएस को सामाजिक सम्मानीयता प्रदान करने का काम किया तथा 1970 के दशक में जेपी ने आरएसएस कोअपनी संपूर्ण क्रांति का प्रमुख सहयोगी बनाकर वही काम किया। 1934-42 जेपी के राजनैतिक जीवन का सर्वाधिक सकारात्मक काल था, उसके बाद वे सर्वोदयी दलविहीनता से संपूर्ण क्रांति की नारेबाजी तक आजीवन राजनैतिक दुविधा के शिकार रहे। लोहिया तो पूंजीवाद और साम्यवाद को समान स्तर पर रखकर इसलिए विरोध करते थे कि दोनों यूरोप से आए हैं, जब मजदूर, किसान, संस्कृतिकर्म तथा छात्र मोर्चों पर संयुक्त मोर्चे बन रहे थे तो अशोक मेहता और मीनू मसानी के साथ लोहिया टॉर्च-खुरपी लेकर कम्युनिस्ट कॉन्सिपिरेसी तलाश रहे थे।
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