Dayaa Shanker Mani Tripathi मार्क्सवाद वस्तुनिष्ठ यथार्थ का संज्ञान लेकर ही उसका जनपक्षीय विश्लेषण करके ही स्टैंड तय करता है। कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में मजदूरों की एकता का मार्क्स-एंगेल्स का नारा मूल रूप से, 'सभी देशों के मजदूरों एक हो' है। मजदूरों की एकता राष्ट्रीय स्तर पर ही शुरू होकर अंतरराष्ट्रीयता की तरफ अग्रसर होगी। विकास के क्रम में मध्यकालीनता से आधुनिक राष्ट्रराज्य में संक्रमण के दौरान राष्ट्रवाद सत्ता की वैधता की विचारधारा के रूप में उभरा। पूंजी का चरित्र इस अर्थ में भूमंडलीय है कि वह न तो स्रोत के मामले में भू(राष्ट्र)केंद्रिक (Geocentric) है न निवेश के मामले में। अमेरिकी पूंजीपति को अमेरिका में उत्पादन मंहगा पड़ता है इसलिए वह उत्पादन इंडोनिशिया या इंडिया में स्थांतरित करता है। अंबानी को सरकारी कृपा से मिले स्टेटबैंक के लोन का निवेश ऑस्ट्रेलिया के कोयला खदानों में ज्यादा फायदेमंद है तो भारत से लेकर वह पैसा वहां लगाएगा। वास्तविक अर्थों में चूंकि पूंजी का कोई देश नहीं होता तो मजदूर का भी कोई देश नहीं होता। अमेरिकी शोध संस्थानों में भारतीय शोधार्थी की उपयोगिता ज्यादा होगी, तो अमेरिकी शोधार्थी की बजाय उसे ही तरजीह देगा और उसकेलिए भी भारत की तुलना में वहां ज्यादा सुविधाएं मिलेंगी तो वह उसे ही तरजीह देगा। अस्मिता के कई स्तर हैं, जिसका केंद्रविंदु इंसानी अस्मिता है औॅर वाह्य परिधि भूमंडलीय। दरअसल गांधी की सामुद्रिक वृत्त की राजनैतिक प्रणाली की ही तरह वैयक्तिक अस्मिता की भी सामुद्रिक वृत्तीय प्रणाली है, कब किस अस्मिता को तरजीह देनी चाहिए वह संदर्भ और परिस्थितियों पर निर्भर करता है, लेकि हर व्यक्ति की मौलिक अस्मिता इंसानी अस्मिता है। स्त्री या पुरुष के रूप में जन्मना जीववैज्ञानिक संयोग की अस्मिता है, इसलिए हम पहले इंसान हैं, तब स्त्री या पुरुष। लेकिन सामाजिक चलन में होता उल्टा ही है। उसी तरह हम पहले इंसान हैं तब हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी, अफगानी और अमेरिकी। सैन्यकर्म को प्रायः राष्ट्रीय अस्मिता के मानक के रूप में गौरवान्वित किया जाता है लेकिन सैनिक की राष्ट्रीय से पहले नौकरी की अस्मिता होती है। चौथी शताब्दी ईशापूर्व सिकंदर मक्दूनी सेना के बल पर अन्य यूनानी नगर राज्यों को रौंदता हुआ आगे बढ़ा तो उसकी सेना में विजित नगर राज्यों के सैनिक भी शामिल करके यूनानी सेना के साथ इरान को परास्त किया और पराजित फारस (इरान) के सैनिक भी यूनानी सैनिक हो गए और सिंध पर विजय के बाद सिंधी सैनिक भी यूनानी सैनिक हो गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड में सैनिकों को आदेश देने वाला ब्रिगेडियर डायर ही अंग्रेज था लेकिन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले सैनिक तो हिंदुस्तानी ही थे। 15 अगस्त 1947 की आधी रात के पहले भारतीय सेना के सैनिक अंग्रेज अधिकारियों के आदेश से हिंदुस्तानी आवाम पर हमला करते थे, रात के 12 बजते ही उनकी निष्ठा बदल गयी। अस्मिताओं के स्तर का मामला जटिल है, लेकिन जाति-धर्म की अस्मिता थोपी हुई मिथ्या चेतना है, जिससे मुक्ति का निरंतर प्रयास करना चाहिए।
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