Tuesday, October 8, 2024

शिक्षा और ज्ञान 357 (पूंजीवाद का उदय और विकास)

 मित्र, Kumar Narendra Singh की जलेबी उद्योग की एक पोस्ट पर कमेंट:


कारीगरों के छोटे-छोटे काखानों को हड़प कर; उन्हें मजदूर बनाकर ; उन्ही की कारीगरी से छोटे कारखानों को उद्योग नाकर सरकार के कृपापात्र धनपशु एकाधिकार (मोनोपोली) उद्योगपति बन गए। पूंजीवाद के उदय-विकास की प्रक्रिया जारी है। लेकिन जब मजदूर इनकी चाल समझ जाएंगे और वर्ग-चेतना से लैश अपनी संगठित शक्ति से अपनी संपत्ति यानि इन उद्योगों पर अपना वापस अपना अधिकार कायम करेंगे तो इन धनपशुओं को भी आजीविका के लिए श्रम करना पड़ेगा। इसका कोई अग्रिम टाइमटेबुल नहीं तैयार किया जा सकता कि वह दिन कब आएगा, लेकिन आएगा ही और वह दिन मानव-मुक्ति की प्रक्रिया की शुरुआत का दिन होगा क्योंकि मजदूर की मुत्ति में ही मानव मुक्ति निहित है। शासक वर्ग के भोंपू इसे यूटोपिया कहेंगे क्योंकि कोई आदर्श जबतक मूर्तिरूप नहीं ले लेता तब तक यूटोपिया लगता है और मूर्तिरूप लेते ही इनभोपुओं को कल्चरल शॉक देता है। 42 साल पहले मुझे स्कूल से आगे अपनी बहन के पढ़ने के अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ा था क्योंकि उस सांस्कतिक परिवेश में लड़कियों का बाहर पढ़ने जाना एक यूटोपिया था। आज किसी बाप की औकात नहीं है कि कह दे कि वह बेटी-बेटा में फर्क करता है, यह अलग बात है कि एक बेटे के लिए 4 बेटियां भले पैदा कर ले।

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