सामाजिक चेतना पर एक विमर्श में किसी ने पूछा वर्ग क्या होता है?
वर्ग पर बहुत लिख चुका हूं। आपको टैग करके शेयर करूंगा। संक्षेप में, सभ्यता का इतिहास परजीवा और श्रमजीवी वर्गों और वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है, वर्गों के स्वरूप और चरित्र बदलते रहे हैं। जिस वर्ग का आर्थिक संसाधनों पर वर्चस्व रहता है, वह परजीवी, शासक वर्ग होता है और उसकी परजीविता पोसने वाला वर्ग शासित-शोषित वर्ग होता है। पूंजीवाद ने सामाजिक विभाजन को सरल बना दिया। पूरा समाज मूल रूप से दौ परस्पर विरोधी हितों वाले वर्गों में बंटा हुआ है -- पूंजीपति और सर्वहारा यानि मजदूर। मजदूर कौन है? पूंजीवाद ने श्रमिक को श्रम के साथन से मुक्त कर दिया। आजीविका के लिए हम सब अपनी अर्जित श्रमशक्ति बेचने के लिए अभिशप्त हैं। जो भी भौतिक या बौद्धिक श्रमशक्ति बेचकर आजीविका कमाता है वह मजदूर है, चाहे वह प्रोफेसर हो या कार्पेंटर।जिस तरह हिंदू जाति व्यवस्था जातियों का ऐसा पिरामिडाकार सामाजिक ढांचा है कि सबसे नीचे वाले को छोड़कर हर किसी को अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल ही जाता है, उसी तरह पूंजीवादी आर्थिक ढांचे में सबसे नीचे वाले को छोड़कर सबको अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल ही जाता है। सुविधासंपन्न मजदूर अपने को शासक वर्ग का समझने की मिथ्याचेतना का शिकार होता है। उसे लंपट बुर्जुआ कहा जाता है, लंपट सर्वहारा की ही तरह लंपट बुर्जुआ में शासक वर्ग का हित साधता है। नीचे एक 6 साल पहले लिखे लेख का लिंक शेयरकर रहा हूँ।
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