कल मैं जन्मकुंली से 69 का हो गया यानि 70वें में प्रवेश कर गया, वैसे तो
प्रमाणित, प्रामाणिक दस्ताबेजों में फरवरी में ही 70 का हो गया। इसकी कहानी मैं एक बार लिख चुका हूं। प्राइमरी की टीसी बनाते समय हमारे प्रधानाध्यापक को एहसास हुआ कि 1969 में हाईस्कूल की परीक्षा की न्यूनतम आयु के नियम का पालन करने के लिए उस साल 1 मार्च को मेरी उम्र 15 साल करने के लिए 1954 फरवरी की जो भी तारीख उनके दिमाग में आई लिख दिया।
इन 69 सालों में जब पीछे मु़ड़कर देखता हूं तो स्लेट साफ दिखती है, इन सालों को जीते समय कभी भी निरर्थकता का आभास नहीं हुआ, हमेशा लगा कि नतमस्तक समाज में सिर उठाकर जीने के मंहगे शौक के साथ सार्थक जिंदगी ही जी रहा हूं। लेकिन लगता है वह सभी सार्थकताएं तत्कालिक/समकालिक थीं, दीर्घकालिक/सर्वकालिक नहीं। शाश्वत आशावादी होने के चलते, आगे देखने पर लगता है कि अब भी दीर्घकालिक सार्थकता की संभावनाएं हैं।
नरेंद्र तथा सभी मित्रों का एक बार फिर से हुत बहुत आभार।
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