Saturday, June 1, 2024

बेतरतीब 179 (विवाह)

 कल (29 मई) को हमारे विवाह को 52 साल हो गए, वैसे उन दिनों विवाहोत्सव 3 दिन चलता था तो आज (30 मई) भी वर्षगांठ का दिन माना जा सकता है। यह पहला अवसर है कि विवाह की वर्षगांठ पर उसी जगह (ससुराल) हूं , जहां विवाह हुआ था, लेकिन गमी के उत्सव में आया हूं , इसलिए विवाह की वर्षगांठ का उत्सव नहीं मनाया जा सकता। पत्नी के बड़े भतीजे की पत्नी का हृदयगति रुकने से 15 मई को देहांत हो गया। परसों तेरहवीं थी जिसमें लगभग 500 लोगों ने भोजन किया। वैसे तो गम के उत्सव की बात अजीब लगती है, लेकिन किसी करीबी मृत को सम्मान देने की सामुदायिक परिपाटियों में मैं चुपचाप शिरकत कर लेता हू।


52 साल पहले (30 मई1972) आज के दिन हमारी शादी का बड़हार था। शादी के दूसरे दिन को बड़हार कहा जाता था। सुबह नाश्ते के बाद जनवाशे में नाच-गाना और शास्त्रार्थ होता था और दोपहर के भोजन के बाद महफिल सजती थी, हमारी शादी में क्षेत्र की नामी नर्तकी लालमणि गयी थी। दोपहर के भोजन और महफिल के बीच एक कर्मठ खिचड़ी का होता था। दूूल्हा रिश्ते को छोटे भाइयों के साथ मंडप में बैठता था और दहेज के सामान सजाए जाते थे। दूूल्हा मुंह फुलाकर बैठता था और दहेज से संतुष्ट कोई मामा या फूूूूूूफा टाइप रिश्तेदार दूूल्हे के कान में खिचड़ी छूूने को कहता था और तालियों तथा प्रायः बंदूक की हवाई फायरिंग से इसका स्वागत किया जाता और मंडप में बैठा दूल्हा और बाकी बच्चे मिठाई और पकवान खाकर बैंड -बाजे के साथ जनवाशे में जाते और महफिल शुरू होती। मैं चूंकि प्रतिरोध के साथ विवाह कर रहा था सो मामा--फूफा के कान में कहने की गुंजाइश नहीं थी। मंडप में खिचड़ी परसी जाते ही मैंने छू दिया और मंडप में साथ बैठे बालकों के साथ मिठाई वगैरह खाकर, साथ के बच्चों के साथ 100-150 मीटर दूर जनवाशे में पैदल ही चला गया।

घरातियों और बरातियों में कानाफूसी होने लगी कि मैं शायद किसी बात पर या किसी चीज के लिए नाराज होकर मंडप से उठ गया। मुझे पता चला तो मैं साथी लकों के साथ दुबारा आकर मंडप में यह कह कर बैठ गया कि अब जब कहिएगा तब उठूंगा। हमने दुबारा औरतों के गीत सुने और दुबारा मिठाई खाया।

जो लोग चाहें आज भी 52वें सालगिरह की बधाई दे सकते हैं कुछ आभार अग्रिम कुछ बाद में दे दूंगा।

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