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अर्थ ही मूल है।
जब शिकार आजीविका का प्रमुख साधन यानि मनुष्यों के जीवन का प्रमुख आर्थिक क्रियाकलाप था तो शिकार आधारित भोजन की अनिश्चितता से निपटने के लिए उन्होंने आरक्षित भोजन के लिए पशुपालन की शुरुआत की। उन्हें दूध, खेती या यातायात के लिए पशुओं के उपयोग का ज्ञान बाद में हुआ। जैसे जैसे जिस पशु की आर्थिक उपयोगिता बढ़ती गयी, आहार के लिए उनका वध घटता गया। हमारे वैदिक पूर्वजों को युद्ध और यातायात के लिए घोड़ा इतना उपयोगी हो गया कि आहार के लिए उसका वध वर्जित हो गया। कुटुंब के मुखिया (राजा) के सम्मान का उत्सव मनाने के लिए साल में एक बार अश्वमेध यज्ञ होता था। धीरे-धीरे जब दूध और खेती के लिए क्रमशः गाय, बैल का उपयोग बढ़ता गया, आहार के लिए इनका वध प्रतिबंधित होता गया।
#अर्थ ही मूल है.
Sunday, June 2, 2024
मार्क्सवाद 301(अर्थ ही मूल है)
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