दलितों में एक एक खास जाति में एक तपका बहनजी का उसी तरह अंधभक्त है, जैसे सवर्णोे में एक बहुत बड़ा तपका मोदी का। बहुत दिनों बाद चुनाव के समय अपने गांव के इलाके में रहा और सभी समुदायों को लोगों से बातटचीत की। सभी समुदायों के लोगों से मेरा संवाद होता है। बहुत दिनों से कभी-कभार ही गांव जाने के बावजूद सभी मुझसे सम्मान और प्यार से बात करते हैं। सभी समुदायों में मेरे मित्र भी हैं ज्यादातर सवर्ण लड़कों को मेरा मोदी-विरोधी होना या मेरे जातिवाद विरोधी विचार अच्छे नहीं लगसते, लेकिन वे भी सम्मानपूर्वक तर्क सुनते हैं। मेरे दलित मित्र मुझसे सहमत थे कि मौजूदा संदर्भ में बसपा को वोट देने का मतलब भाजपा की मदद करना है, लेकिन ज्यादातर ने बसपा को ही वोट दिया, कुछ ने सपा उम्मीदवार को वोट दिया लेकिन मुखऱ बहनजी के अंधभक्त ही थे। उसी तरह कई सवर्ण, मोदी-योगी की नीतियों की आललोचना से, अन्यान्य कारणों से,सहमत होने क बावजूद वोट भाजपा को ही दिेए। कुछ तर्कशील लड़कों ने नोटा की बटन दबाया क्योंकि वे यादव को वोट नहीं दे सकते थे और उनको लिए, सपा का मतलब है यादव। गांवों में बहुजन शिक्षा और दावेदारी के चलते, सामाजिक आचरण में जातीय भेदभाव बहुत घटा है, बावजूद इसके जातीय सामूहिक अस्मिताबोध मजबूत हुआ है।
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