Sunday, February 19, 2023

मार्क्सवाद 282 (परिवर्तन)

 मार्क्सवाद को धर्म बताना एक दुराग्रह है। मार्क्स कोई भविष्यवाणी नहीं करते, तथ्य-तर्कों के आधार पर 'अर्थ ही मूल है' की धुरी पर इतिहास की समीक्षा करते हैं और बताते हैं कि जब की कोई उत्पादन संबंद्ध इतिहास को आगे ढ़ाने की बजाय उसकी गति पर बेड़ियां बन जाते हैं तो क्रांतिकारी युग परिवर्तन होता है, जैसा कि आदिम, दास, सामंती युगों के साथ हुआ। जब पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की आगे की संावनाएं खत्म हो जाएंगी तो अगला युग परिवर्तन होगा जिसके संभावित नायक के रूप में मार्क्स ने सर्वहारा का अन्वेषण किया।द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और प्रकृति का नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है और पूंजीवाद भी अपवाद नहीं हो सकता। मनुष्य अज्ञानवश दीर्घकालीन यथास्थिति को शाश्वत मान लेता है जबकि परिवर्तन के सिवा कुछ भी शाश्वत नहीं होता।

मार्क्सवाद 281 (क्रांति)

 इतिहास की समीक्षा के आधार पर मार्क़्स का यह आकलन है कि पूंजीवाद के बाद का युग समाजवाद का युग होगा। सामंती युग के खंडहरों से पूंजी के नायक के रूप में नया नायक पैदा हुआ, अनुमान है कि पूंजीवाद के खंडहरों से अगला नया सर्वहारा होगा। हर नए युग के बीज पिछले युग में अंकुरित होना शुरू हो जाते हैं। बीसवीं सदी की क्रांतियां उसी बीज के कुछ प्रफुटन थीं, अगली क्रांतियों की जगह प्रतिक्रांतियां हो गयीं, हमारे जीवन में न सही, उम्मीद है हमारी नतिनियों के जीवन में अगली क्रांतियां होंगी।

Saturday, February 18, 2023

मार्क्सवाद 280 (सनातन)

 1. गाली-गलौच और अपशब्दों का प्रयोग तो धर्मांध, अंधभक्त करता है, मैं तो नास्तिक हूं और नास्तिक विवेकसम्मत तथ्य-तर्कों की बात करता है।

2. अनादि-अनंत तो केवल परिवर्तन है, बाकी जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है। यदि मनुष्यता सनातन है तब तो मनुष्यता किसी एक भूखंड में सीमित नहीं है और फिर तो पूरी दुनिया ही सनातन हुई!! धर्मांधता या सांप्रदायिक नफरत की अमानवीयता भी किसी एक भूखंड में नहीं सीमित है।
 
3. मार्क्स कोई त्रिकालदर्शी भगवान नहीं थे बल्कि एक अद्वितीय प्रतिभा और अदम्य मानवीय सरोकार के इंसान थे तथा तथ्यात्मक अध्ययन के आधार पर इतिहास की विवेचना किया है और अन्यायपूर्ण, शोषण पर आधारित समाज को बदलकर एक समतामूलक सामूहिकतावादी समाज के निर्माण का आह्वान किया है। सही ककह रहे हैं, उद्पादन प्रणालियों के आधार पर ऐतिहासिक खंडों का उनका निर्धारण यूरोपीय समाज के अध्ययन पर आधारित है, इसीलिए जब उन्होंने भारत का अध्ययन करना शुरू किया तो पाया कि यहां की उत्पादव पद्धति उनके यूरोप के अध्ययन के निष्कर्षों में नहीं समाहित हो पातीं और उन्होंने इसके लिए नयी अवधारणा की रचना की-एसियाटिक मोड ऑफ प्रोडक्सन।  

Tuesday, February 7, 2023

सत्ता का भय होता है, विचारों का आतंक

 सत्ता का भय होता है, विचारों का आतंक

सत्ता का भय होता है, विचारों का आतंक
और विचार तो अजर-अमर होते हैं
मरते नहीं, फैलते और इतिहास रचते हैं
इसीलिए विचारों से आतंकित सत्ता
विचारक कोआतंकवादी करार देती है
जिसके लिए नया सर्वनाम गढ़ती है
उसका अर्बन नक्सल नाम रखती है
और उसको मार देती है या कैद कर देती है
लेकिन जहर पीकर भी न तो सुकरात मरते हैं
न ही फांसी पर चढ़कर भगत सिंह
इतिहास साक्षी है कि विचारक मरता नहीं
हर युग के वर्तमान में जिंदा रहता है
और आतंकित करता रहता है हर वर्तमान की सत्ता को
(ईमि: 04.02.2023)

Thursday, February 2, 2023

मर्दवाद

 स्त्री और पुरुष दोनों ही होते हैं एक जैसे इन्सान

संरचनात्मक जीववैज्ञानिक फर्क के साथ
फर्क को असमानता के रूप में परिभाषित करके
और गोल- मटोल तर्क के इस्तेमाल से
उसी परिभाषा के जरिए
आसमानता को प्रमाणित करने वाले दार्शनिकों के
पदचिन्हों पर चलते हुए
पुरुषों के स्वघोषित प्रवक्ताओं ने
रच डाला पुरुष श्रेष्ठता की मर्दवादी विचारधारा

रईस

 जो खानदानी रईस होते हैं

उन्हें संस्कार में मिलते हैं
हरामखोरी के पारंपरिक सलीके
जिसकी गौरवगाथा के होते हैं पुराने तरीके
जो होते हैं नए धनाढ्य
वे खुद सीखते हैं हरामखोरी के सलीके
सरकारी कृपा के नायाब तरीके।
जो होते नहीं किसी भी किस्म के रईस
न खानदानी न नवधनाढ्य
करते नहीं किसी किस्म की हरामखोरी
मेहनत मजूरी से रोजी कमाते हैं
ओर झेलते हैं अवमानना तथा तिरस्कार
हर तरह के हरामखोरों की
लेकिन होती नहीं उनके पास फुर्सत
इसपर ध्यान देने की