Monday, October 10, 2022

शिक्षा और ज्ञान 383 (शिक्षा)

 दिल्ली विवि के शिक्षकों के एक ग्रुप में भारी संख्या में एढॉक शिक्षकों की नौकरी से बेदखली और विवि शिक्षकसंघ (डूटा) की चुप्पी पर किसी ने एक पोस्ट में अपनी नाराजगी शेयर किया । सिद्धांततः एढॉक नियुक्ति 4-6 महीने की होती है लेकिन यहां लोग 5 से 25 सालों से एढॉक पढ़ा रहे हैं, ऐसे में इंटरविव द्वारा उनकी छटनी नौकरी न देना न होकर नौकरी से निकालना हुआ। डूटा का नेतृत्व इस समय आरएसएस के अनुषांगिक संठन, एनडीटीएफ के हाथ में है। उस पर कमेंट:


कहा जाता है, "जैसा राजा, वैसी प्रजा" लेकिन 'जनतंत्र' में कहावत उल्टी हो गयी है, "जैसी प्रजा वैसा राजा"। चुनावी जनतंत्र दरअसल संख्यातंत्र है जिसमें सत्ता संख्याबल से निर्धारित होती है, दुर्भाग्य से अधोगामी चेतना के चलते उच्च शिक्षा के बावजूद शिक्षकों का झुंड खुद को संख्याबल से जनबल में तब्दील करने में असफल रहा है। वैसे शिक्षित जाहिलों का प्रतिशत अशिक्षित जाहिलों से अधिक है।यदि व्यक्ति जन्म के जीववैज्ञानिक संयोग की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेकसम्मत इंसान नहीं बन सकता तो वह उच्चतम शिक्षा (पीएचडी) के बावजूद जाहिल ही रह जाता है। शिक्षा और समाज के लिए यह चिंताजनक बात है कि इतनी भारी संख्या में शिक्षक जाति (जातिवाद) और धर्म (सांप्रदायिकता) की मिथ्या चेतना से ऊपर उठने (बाभन से इंसान बनने) में असमर्थ है। शिक्षक होने का महत्व समझें और आगे बढ़ें।

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