मुद्दा यह भी होना चाहिए कि जब भगवा हुड़दंगी भीड़ कर्नाटक के कालेज में तिरंगा फहराए जाने वाले लौह स्तम्भ पर भगवा ध्वज लहरा रही थी तब पुलिस कहाँ थी? जब जयश्रीराम का शोर मचाती भीड़ एक अकेली लड़की की घेराबंदी कर रही थी तब पुलिस कहाँ थी? सारे पत्रकारों को इस हंगामे की पूर्व सूचना थी लेकिन स्टेट मशीनरी इसके रोकथाम के लिए मौजूद क्यों नहीं थी? सच तो यह है कि यह राज्य द्वारा बहुसंख्यकवाद की राजनीति को पुष्पित पल्लवित करने का सुनियोजित प्रयत्न है. यह दूर की कौड़ी नहीं होगी, यदि इसे चुनावी वातावरण को प्रभावित करने की व्यूहरचना के रुप में भी समझा जाए. अब कर्नाटक दक्षिण भारत में हिंदुत्व की प्रयोगशाला बन चुका है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment