हजारों सालों के इतिहास में किसका डीएनए किससे मिलता है, कहना मुश्किल है। धर्मांतरण का कारण कोई बाहरी नहीं, ब्रह्मा के नाम पर बनाई गयी वर्णाश्रम व्यवस्था की हमारी अपनी विद्रूपताएं हैं। ज्यादातर धर्मांतरण फशुवत हालातमें रह रहीं शूद्र वर्ण की कारीगर (बढ़ई, लोहार, दर्जी, बुनतक, धुनिया, चीक आदि) जातियों के लोगों ने किया, जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बावजूद सामाजिक रूप से अधीनस्थ थे। यह सोचकर मुसलमान बने कि वहां भगवान के सामने सब बराबर हैं। लेकिन जाति है कि जाती ही नहीं। वहां भी जाति लेकर गए। सवर्ण या तो सत्ता की लालच में धर्मांतरण किए, जैसे आजकल सत्ता की आकांक्षा में बहुत लोग भक्त बन गए हैं, या जाति बहिष्कृत होकर। किसी ने मुसलमान के साथ भोजन कर लिया या मुसलमान से शादी कर लिया तो जाति से निकाल दिया गया। बिना धर्म के (नास्तिक) जीवन का आभास नहीं था तो मुसलमान बन गए। बलात् धर्मांतरण हुआ होता तो सारे भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक होते। हमारे आपके पूर्वज सिंह और मिश्र न रह गए होते। अफवाहजन्य इतिहासबोध से मुक्त होकर तथ्यपरक इतिहास पढ़िए।
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