Saturday, February 26, 2022

लल्ला पुराण 320 (यूक्रेन युद्ध)

  किसी ने लिखा, " यूक्रेन प्रकरण में भारत के अन्तर्राष्ट्रीय छवि पर धूर्तमण्डली की ओर से कोई पोस्ट अभी तक नहीं आयी है क्या ?" उस पर:

ये धूर्त मंडली कौन है? तर्क- विवेक से वंचित लोग अपनी राय देने की बजाय दूसरों को राय न देने के लिए कोसते हैं। पेट पर लात भी प्रसाद समझकर खाने वाले सरकारी अंधभक्तवे सोचने समझने की शक्ति से वंचित होते हैं क्या? किसी मुद्दे पर अपनी राय बनाने का विवेक होता नहीं, अपनी धूर्तता छिपाने के लिए औरों को गाली देने लगते हैं। बाकी अंधभक्त सुर में सुर मिलाकर पंजीरी की उम्मीद में रटा भजन गाने लगते हैं। इन बुद्धीविहीन अंधभक्तों को सद्बुद्धि की शुभकामनाएं। रूस के युद्धविरोधी प्रदर्शनकारियों को सलाम। विभिन्न शहरों से लगभग 2000 प्रदर्शनकारियों को पुतिन की अधिनायकवादी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया है। साम्राज्यवादी पूंजीवाद जब भी असाध्य संकट के दौर से गुजरता है तो जनमानस का ध्यान भटकाने के लिए अपने आंतरिक अंतर्विरोधों को उछालकर दुनिया को युद्ध के दलदल में झोंक देता है। 1910 और 1930 के दशक के पूंजीवाद के संकट और प्रथम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध तथा इस शताब्दी में अमरीका, इराक और लीबिया पर अमेरिकी हमले इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। जंग अपने आप में ही एक गंभीर मसला है, यह किसी मसले का समाधान नहीं हो सकता। युद्ध में कोई विजयी नहीं होता, मानवता हारती है। यूक्रेन पर रूसी हमले से केवल यूक्रेन की ही नहीं रूस की भी जनता तबाह और बदहाल होगी, इतना ही नहीं भूमंडलीय युग में भारत समेत कोई भी देश इसके कुपरिणामों से अछूता नहीं रहेगा। दुनिया की सभी जनतांत्रिक ताकतों और व्यक्तियों को अपने अपने तरीके से युद्ध का विरोध करना चाहिए। युद्धोंमादी राष्ट्रवाद अधिनायकवादी शासकों की शरणस्थली है। 'जंग चाहता जंगखोर, ताकि राज करे हरामखोर'

Tuesday, February 22, 2022

शिक्षा और ज्ञान 349 ( निजीकरण का जादू)

 निजीकरण का जादू


यूक्रेन में गृहयुद्ध की स्थिति में फंसे भारतीय छात्रों की वापसी के लिए एयरइंडिया ने किराया दोगुना (35,000 से बढ़ाकर 70,000) कर दिया है। गौरतलब है कोरोना संकट में विदेशों में फेसे भारतीयों को एयरइंडिया से मुफ्त स्वदेश लाया गया था। तब यह सेवा सरकारी थी, जिसे सरकार ने सबके साथ और सबके विकास के लिए टाटा को बेच दिया। यह कृपापात्रता पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) का एक नमूना है।

निजीकरण के परिणाम समझने के लिए किसी राजनैतिक अर्थशास्त्र (पॉलिटिकल इकॉनॉमी) के ज्ञान की नहीं महज सहजबोध (कॉमन सेंस) की जरूरत होती है। किसी भी धनपशु का मकसद ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना होता है, जो जनकल्याण या मानवीय संवेदना से नहीं, लूट-पाट और धोखाधड़ी तथा मौके का फायदा उठाने से किया जा सकता है।

Wednesday, February 16, 2022

लल्ला पुराण 319 (सिंदूर औरबुर्का)

 सिंदूर और बुर्का दोनों ही सांस्कृतिक रूप से समाज द्वारा स्त्रियों पर थोपे गए मर्दवादी प्रतीक हैं, जिनसे मुक्ति की लड़ाई जबरन नहीं स्वेच्छा से स्त्रियां खुद लड़ेंगी। सांस्कृतिक मान्यताएं लोग व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में आत्मसात कर लेते हैं जिनसे मुक्ति के लिए निरंतर सघन आत्मसंघर्ष की जरूरत होती है। स्त्रियां स्त्रीचेतना से लैश होकर अपनी मुक्ति की लड़ाई स्वयं लड़ रही हैं/लड़ेंगी, जिस तरह वर्गचेतना से लैश होकर मजदूर अपनी लड़ाई खुद लड़ेगा। मेरी पत्नी सिंदूर पहनती हैं, बेटियां नहीं पहनती।


हिंदू-मुसलमान नरेटिव पर आधारित सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं राजनैतिक विचारधारा है, जिसके जाल में सांप्रदायिक ताकतें अपने निहित स्वार्थ सिद्ध करने के लिए आम लोगों को फंसाते हैं। सांप्रदायिक ताकतें अपना अपराध छिपाने के लिए हर बात की तरह इसे भीनवाम रणनीति करार देती हैं। जो सांप्रदायिक है वाम नहीं हो सकता और जो वाम है सांप्रदायिक नहीं हो सकता। वैसे वाम तो राजनैतिक नक्शे पर लगभग विलुप्त हो चुका है, जिसका कारण ढूंढ़ना उनकी अपनी जिम्मेदारी है। फिलहाल उसका कोई खतरा नहीं है, समाज को खतरा सांप्रदायिकता और जातिवाद से है। हर हत्या जघन्य होती है, चाहे कमलेश की हो या अखलाक की। कमलेश की हत्या का जश्न मनाने वाले उतने ही अमानवीय हैं जितने अखलाक की हत्या का जश्न मनाने वाले।

बाकी हर तरह के कट्टरपंथी, जातीय, धार्मिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर तर्कशीलता तथा मानवीय संवेदनशीलता अपनाकर कोई भी विवेकसम्मत इंसान बन सकता है। कोई भी मूल्य या मान्यता किसी भी समुदाय या समूह के लिए कितना भी उपयुक्त क्यों न हो, जब तक उस समुदाय या समूह को उपयुक्त न लगे, उनपर थोपना अनुचित है।

Friday, February 11, 2022

कुछ भी नहीं है साश्वत परिवर्तन के सिवा

 कुछ भी नहीं है साश्वत परिवर्तन के सिवा

जिसका भी अस्तित्व है, अवश्यंभावी है उसका अंत
हर निशा ऐलान है एक नए भोर का
हर पतझड़ के बाद आता है एक नया वसंत

Wednesday, February 9, 2022

लल्ला पुराण 318 (बहुसंख्यकवाद)

 मुद्दा यह भी होना चाहिए कि जब भगवा हुड़दंगी भीड़ कर्नाटक के कालेज में तिरंगा फहराए जाने वाले लौह स्तम्भ पर भगवा ध्वज लहरा रही थी तब पुलिस कहाँ थी? जब जयश्रीराम का शोर मचाती भीड़ एक अकेली लड़की की घेराबंदी कर रही थी तब पुलिस कहाँ थी? सारे पत्रकारों को इस हंगामे की पूर्व सूचना थी लेकिन स्टेट मशीनरी इसके रोकथाम के लिए मौजूद क्यों नहीं थी? सच तो यह है कि यह राज्य द्वारा बहुसंख्यकवाद की राजनीति को पुष्पित पल्लवित करने का सुनियोजित प्रयत्न है. यह दूर की कौड़ी नहीं होगी, यदि इसे चुनावी वातावरण को प्रभावित करने की व्यूहरचना के रुप में भी समझा जाए. अब कर्नाटक दक्षिण भारत में हिंदुत्व की प्रयोगशाला बन चुका है.

लल्ला पुराण 317 (धर्मांतरण)

 हजारों सालों के इतिहास में किसका डीएनए किससे मिलता है, कहना मुश्किल है। धर्मांतरण का कारण कोई बाहरी नहीं, ब्रह्मा के नाम पर बनाई गयी वर्णाश्रम व्यवस्था की हमारी अपनी विद्रूपताएं हैं। ज्यादातर धर्मांतरण फशुवत हालातमें रह रहीं शूद्र वर्ण की कारीगर (बढ़ई, लोहार, दर्जी, बुनतक, धुनिया, चीक आदि) जातियों के लोगों ने किया, जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बावजूद सामाजिक रूप से अधीनस्थ थे। यह सोचकर मुसलमान बने कि वहां भगवान के सामने सब बराबर हैं। लेकिन जाति है कि जाती ही नहीं। वहां भी जाति लेकर गए। सवर्ण या तो सत्ता की लालच में धर्मांतरण किए, जैसे आजकल सत्ता की आकांक्षा में बहुत लोग भक्त बन गए हैं, या जाति बहिष्कृत होकर। किसी ने मुसलमान के साथ भोजन कर लिया या मुसलमान से शादी कर लिया तो जाति से निकाल दिया गया। बिना धर्म के (नास्तिक) जीवन का आभास नहीं था तो मुसलमान बन गए। बलात् धर्मांतरण हुआ होता तो सारे भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक होते। हमारे आपके पूर्वज सिंह और मिश्र न रह गए होते। अफवाहजन्य इतिहासबोध से मुक्त होकर तथ्यपरक इतिहास पढ़िए।