"मैने पहले भी कहा है कि कोई इंसान कभी पूर्ण नास्तिक हो ही नही सकता। सबकी कहीं न कही आस्था जरूर होती है। दूसरी बात जिस तरह एक आस्तिक का बिना किसी प्रमाण के ईश्वर को स्वीकार करना अजीब लगता है, उसी प्रकार एक नास्तिक का ईश्वर को अस्वीकार करना भी उतना ही विचित्र है।"
यह फैसलाकुन वक्तव्य किसी मुल्ले की फतवेबाजी सी ही लगती है कि कोई इंसान पूर्ण नास्तिक नहीं हो सकता, इसका क्या मतलब है? प्रमाण किसी चीज के होने का होता है न होने का नहीं? प्रमाणित करो कि ईश्वर नही है, फालतू सवाल है, ईश्वर के होने का प्रमाण न होना ही उसके न होने का प्रमाण है। आस्था और प्रमाणित सिद्धांतों की स्वीकार्यता अलग-अलग बातें हैं. न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को मानना इस्था नहीं बल्कि प्रमाणित को स्वीकार करना है, जिस दिन अन्यथा प्रमाणित हो जाएगा, अस्वीकार्य हो जाएगा। सार्वजनिक बातें इनबॉक्स वैसे भी नहीं करनी चाहिए। जिसका भी उपरोक्त वक्तव्य है, वह एक कनफ्यूज्ड व्यक्ति लगता है। मार्क्सवादी आपस में लाल सलाम का क्रांतिकारी अभिवादन करते हैं, उसके ऐतिहासिक कारण हैं, उसमें कोई आस्तिकता नहीं है।
No comments:
Post a Comment