सारे सरकारी उपक्रम बिक गए हैं या बिकने वाले हैं। सारे धनपशुओं खासकर प्रॉपर्टीडीलरों और बिल्डरों ने निजी विश्वविद्यालय खोलकर ज्ञान के ठेकेदार बन गए हैं। सार्वजनिक विश्वविद्यालयों का पिछले दरवाजे से निजीकरण किया जा रहा है। सरकारी प्रतिष्ठानों में क्लास-2; 3; 4 की नौकरियां ठेके पर दे दी गयी हैं। शिक्षकों के पद भरे नहीं जा रहे हैं या संविदा (ठेके) पर हैं। बेरोजगारी अथाह सागर बनती जा रही है। तथा कथित पढ़े-लिखे सवर्ण गोरक्षी आतंकवादी बन गए हैं। सरकारें आरक्षण का लॉलीपॉप बांट रही हैं। धनपशुओं की दलाल सरकारें मुल्क की संपदा देशी-विदेशी धनपशुओं के हवाले कर रही हैं। सर्वहारा हिंदू-मुसलमान ऩफरत नफरत खेल रहा है। सुप्रीमकोर्ट समेत सभी संवैधानिक प्रतिष्ठानों और मीडिया में पट्टाधारी बैठे हैं। मुल्क असाध्य पतन के गर्त में गिरता जा रहा है, आप आरक्षण आरक्षण खेलते रहिए जो पहले ही अप्रासंगिक बन गया है।
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