Monday, November 28, 2016

एक शहंशाह बहुत समझदार था

एक शहंशाह बहुत समझदार था
वह जानता था कि जनता होती है भीड़
चलती है वह भेड़चाल
समझती नहीं वह
राज-काजी फरेब का जटिल जाल
वह जानता था कि कितना अच्छा होता
काश! वह परमार्थपूर्ण, सत्यवादी, संत, महात्मा होता
और बन जाता सद्-गुण की नई परिभाषा

लेकिन वह यह भी जानता था
कि नहीं है सियासत किसी ऋषि-मुनि का काम
देना पड़ता है सत्ता के लिए
कितने ही दुष्कर्मों को अंज़ाम
काश चलता होता
सत्य-अहिंसा से जम्हूरी सियासत का काम

करना पड़े सियासत में कितना भी छल फरेब
खुले न मगर किसी भी चाल का भेद
वह एक भी ऐसा शब्द नहीं बोलता
जो करुणा से हो न ओत-प्रोत
दिखता है वह ऐसे
हो जैसे मानवीय संवेदनाओं का श्रोत

करता वह शहंशाह रियाया से निरंतर संवाद
बताता है उन्हें गाहे-बगाहे अपने मन की बात
कभी मन-ही-मन शहीदों के साथ दिवाली मनाता
खेलता है होली सरहद पर सैनिकों के साथ
मलाल है उसे इस बात का
कर न सका सम्मान सैनिक बनने के ख़ाब का

मचा था जब सिक्कों की गफलत से मुल्क में कोलाहल
लगा उसे बह रहा है देशभक्ति का हलाहल

अधूरी

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