Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी

65 जाने जा चुकी हैं, करोड़ों का उत्पादन ठप है, किसान फसल की बुआई-सिचाई नहीं कर पा रहा है. लोग शादी-व्मोयाह के लिए अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं. मोदी ने विदेश से (स्विस बैंकों में जमा) काला धन ले आकर हर खाते में 15 लाख जमा करने का वादा किया था देश से नहीं. मोदी के 15 लाख के जुमले में ज्यादा अतिशयोक्ति नहीं थी, यदि अरबों में विदेशी बैंकों में जमा राशि देश वापस आ सकी तो हर व्यक्ति को तो नहीं लेकिन 45 करोड़ गरीबों को 1-1 लाख रुपया दिया जा सकता है. एक सर्वे के मुताबिक विदेशों में जमा काला धन विदेशी ऋण का 13 गुना है. काला धन का मतलब करेंसी नोट नहीं है, वह तो विनिमय का माध्यम भर है. काला धन सम्पदा में होता है, सोना-चांदी; हीरे-जवाहरात; रीयल स्टेट; फर्जी-असली, देशी-विदेशी कंपनियों या "ज्ञान उद्योग" या हवाला में निवेश. टुटपुजिए खिलाड़ी और भ्रष्ट नेता-नौकरशाह ही नगदी में काला धन रखते हैं. जिसके पास है वह तमाम तरीकों से जितना हो पा रहा है सफेद करवा रहा है बाकी नष्ट. कौन कालाबाजारिया इतना नेक होगा कि 200% जुर्माने के साथ पैसा लौटाने जाएगा? काले धन के अर्थशास्त्र के विशेशज्ञ, प्रो. अरुण कुमार के अनुसार देश में बड़े काला बाजारियों की संख्या महज 3% है जिनकी सर्जिकल स्ट्राइक यदि सरकार कर, यदि इस मुद्दे पर गंभीर होती तो कर सकती थी, लेकिन उसे तो कुछ अजूबा करना था. सर्जिकल ऑपरेसन क्या होता है? चिकित्सा विज्ञान में सर्जरी का मतलब होता है कि शरीर से किसी अवांछित तत्व को बाहर निकालने के लिए ऐसी चीड़-फाड़ की जाय कि बाकी अंगों पर असर न पड़े. यहां तो अवांछित/रुग्ण अंग को कोई फर्क नहीं पड़ा शरीर ही काटी जा रही है.

काले धन पर अंकुश के लिए विषय की समझ की जरूरत हैजिस तरह हम अपनी मेहनत की कमाई में से जैसे हम कुछ धन बैंक में रखते हैं कुछ रोजमर्रा की जरूरतों और किसी आकस्मिक जरूरत के लिए नगद. काले धन के मामले में भी यही बात सही है.काले बाजारिए बचत को अन्य रूपों तब्दील कर लेते हैं, नगदी भी जिसमें एक है. सफेद धन की ही तरह ही काले धन का भी उपयोग व्यापारी, विवाह घरों और रिशर्टों के मालिक जौहरी आदि व्यापार में व्यापार में खर्च करते हैं या हवाला के जरिए विदे. कुल काले धन का नगण्य हिस्सा ही है. मूर्ख नौकरशाह और नेता ही अपनी हराम की कमाई नगदी में रखते हैं. तुम ध्यान से मैक्यावली पढ़ो. वह शासक को सलाह देता है कि वायदा आसमान का करो और लूटो धरती. वह सलाह देता है कि लोग कि एक समझदार शासक वायदे पूरा करने में अपना नुक्सान हो सकता है इसलिए समझदार शासक को वायदे पूरा नहीं करना चाहिए, वह भी जब संदर्भ जिसमें कसमें खाकर वायदा किया गया, वह बीत चुका हो. काला धर्म वायदा था, नोटबंदी बहाना. उसके पास वायदा पूरा करने की असमर्थता के हजार बहाने हैं. वह शासकों को सत्ता के लिए हर कुकर्म की सलाह देता है लेकिन उसे दिखना ऐसा चाहिए कि उसके जितना बड़ा धर्मात्मा-पुण्यात्मा कोई है ही नहीं. मोदी का जनता के दुख से दुखी होकर घड़ियाली आंसू बहाना उसी अभिनय का नतीजा है. जैसे तुम कह रहे हो कि यह अच्छा कदम है, बिना जाने की इसमें अच्छाई क्या है? वैसे ही बहुत से गरीब-गुर्बा जिनकी ज़िंदगी तबाह हो रही है कि इससे देशहित होगा. मैक्यावली कहता है कि जनता भीड़ होती है, वह दिखावे को सच मान लेती है और समर्थक बन जाती है. कुछ लोग जो इस चाल को समझते हैं वे कुछ कर नहीं सकते क्योंकि जनता तुम्हारे साथ है. तुम समाजविज्ञान के छात्र हो, ऐसे ही कुछ भी मत बोल दिया करो, सही जानकारी तथा तथ्य-तर्कों पर आधारित वक्तव्य दिया करो. नोटबंदी अर्थ-व्यवस्था को तबाह करने वाली एक मैक्यावलियन धूर्तता है. मैक्यावली समझदार शासक को, लेकिन, यह भी सलाह देता है कि लोगों की संपत्ति लूटने से बचना चाहिए क्योंकि लोग बाप की मौत तो भूल जाते हैं लेकिन पैतृक संपत्ति का नुकसान नहीं. मोदी ने आमजन पर यह आर्थिक हमला किया है और लोगों के आक्रोश से नहीं बच सकते.



इसके पहले 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भी नोटबंदी की रणनीति अपनाई थी लेकिन तब गरीब ही नहीं, निम्न मध्यवर्ग तथा मध्यवर्ग के भी बड़े हिस्से के लिए 100 की नोट ही सबसे बड़ी नोट थी. मैं उस समय जेयनयू में एमए का छात्र था, मुझे मोरारजी सरकार की घोषणा से ही पता चला कि 500; 1000; 5000; 10,000 के भी नोट होते थे. अखबारों में ही नोटों की शकल देखा था, हाथ में लेकर नहीं. कहने का मतलब यह कि उस नोटबंदी से गरीब पर कोई मार नहीं पड़ी थी. मुझे याद है कि जेयनयू में मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप के लिए इनकम सर्टिफिकेट 500 से कम आय की होनी चाहिए थी. इस नोटबंदी से अमीर पर कोई मार नहीं पड़ी. वह तो सबकुछ ऑनलाइन ऑर्डर और डेबिट कार्ड से अपनी खरीददारी करता है. गरीबों पर मार का आलम यह है कि अब तक 65 लोग जान गंवा चुके हैं, हजारों दिहाड़ी मजदूर काम. सर्कुलेसन से मुल्क की 86% मुद्रा 1000-500 की नोटों की थी, बिना किसी तैय्यारी या अंतर्दृष्टि के इन्हें बहिष्कृत कर दिया गया. इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि देश की छपाई क्षमता देखते हुए नई नोटों से मुद्रा आपूर्ति में 7 महीने लगेंगे, तब तक कितने गरीब नोटबंदी की बलि चढ़ेंगे यह तो वक़्त ही बताएगा. इनकेलिए शायद गरीब की मौत की कोई कीमत नहीं होती लेकिन हर मौत मोदी जी के राजनैतिक मौत की कड़ी बनेगी, जब गरीब की आह नारे में तब्दील हो जाएगी, जब दुष्यंत के शब्दों में हर शहर हर गांव में, हर गली हर सड़क पर हाथ लहराते हुए हर लाश चल पड़ेगी. शाहिर का शेर है, 'जुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है.'

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