Wednesday, April 6, 2011

naxalvad

एक साल पहले 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद नहीं हुये बल्कि युद्ध में मारे गए थे.इस लिए नहीं बल्कि इसलिए इसे शोक दिवस के रुप में इसलिए मनाना चाहिये कि यह शासक वर्गों की सर्वहारारा-बनाम सर्वहारा की जंखोरी की घिनौनी साज़िश की भयावह परिणति थी. शासक वर्ग हमेशा गरीब-गरीब को एक दूसरे से मररवाता रहा है और जंगखोरी का उन्माद भर कर अपना उल्लू सीधा करता रहा है. जो 76 गरीब किसान-मजदूरों के बेटे मारे गए वे भाड़े के हत्यारे थे जो रोजी-रोटी के लिए अपने ही भाइओ को मारने और दुश्मन मानने का प्रशिक्षण लेते हैं. और दुश्मन के कोई मानवाधिकार नहीं होते इसलिये उनके साथ मानवीय सम्वेदना क्यों? माओवावद से निपटने के नाम पर हमाँरे बहादुर सिपाही आए दिन आदिवासिओन के गाँव जला रहे हैं, महिलाओं के साथ बलात्कार और मस्सोम आदिवासिओन की हत्या और लूट वे अपना पुनीत कर्तव्य समक्झते हैं.
माओवादी सीआरपीएफ कैम्प में उन्हें मारने नहीं गए थे वे माओवादिओ को मारने गए थे और मारे गए. जैसा कि विकिलीक्स से भंडाफोड़ हो चुका है कि साम्राज्यवादी दलाल सरकारें आदिवासिओ की जमीनो का गुप्त सौदे कर चुकी हैं माओप्वादिओ की मौजूदगी इन दलालों की साज़िश की कामयाबी में रोडा बने हुए हैं और सरकार के लिए लाखों करोड़ों का काला धन खतरा नहीं है जिसको उजागर करके वह देश की तमाम योजनाएँ पूरी कर सकती है, भुखमरी ओइ बेरोजगारी दूर कर सकती है और देश को उन देशभक्तो के सुशील चहरे दिखा सकती है जो देश को खोखला कर रहे हैं जिससे भविष्य के देशभक्त कुछ सिख ले सकें.
आइए इस दिन को शोक-दिवस के रुप में मनाये जब सरकारी साज़िश के चलते 76 गरीब मारे गए वे जिंदा रहते तो कितने गरीब मारते यह अलग बात है.

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