Sunday, April 24, 2011

खामोशी

खामोशी
ईश मिश्र

हमारी खामोशी
हमारे ही नहीं जमाने के खिलाफ है
आजादी के तराने खिलाफ है
इंशानियत के मायने के भी खिलाफ है

तोड़ना ही होगा खामोशी
जुल्म को मिटाने के लिए
लगाना ही होगा नारे
बम-गोले के शोर को दबाने के लिए

अभी तो हमें उनके हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास वक्त नही है
उसका वे सौदा कर चुके हैं
दो जून की रोटी के लिए

उन फिलिस्तीनिओ के हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास इतिहास है भूगोल नहीं
जिनके नारे दब जाते हैं
इज़्र्रायली बमों के शोर और मलवोन के ढेर में

उन किसानों के भी हिस्से के भी
जो खुदकुशी की कोशिशों में मशगूल हैं
उन आदिवासिओ के नारों में भी सुर मिलना है
जिनके नारे टाटा-वेदांता के सोने की खनक को लल्कारते हैं

उन अभागो के हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास जुबान नहीं है
उसे वे गिरवी रख चुके सेठ के पास
जिंदगी की ऐयाशी के लिए

हमें तब तक लगाते रहना है नारे
जब तक सब
अपने-अपने हिस्से के नारे ख़ुद न लगाने लगें
और नारेबाजी की जरूरत खत्म हो जाए
[ईमि/24.4.2011]

No comments:

Post a Comment