खामोशी
ईश मिश्र
1
जब तक रहेगा जन-गण-मन खामोश
बढ़ता ही जाएगा जंगखोरो के गुरुर का आगोश
बढ़ती ही जाएगी जुल्म की चक्की की रफ्तार
किसान-मजदूरों के लहू से रंग जाएँगे अखबार
तोड़नी ही होगी खामोशी, गर तोड़ना है लुटेरों का गुरुर
पैदा करना होगा बगावत का विप्लवी सुरूर
सुननी ही होगी अदम गोंडवी की
'होशो-हवास'में कही गई बात
'जनता के पास एक ही चारा है बगावत'
सुनो फैज़-अहमद फैज़ की ललकार
उठ बैठो ऐ खाक्नसीनो, जुल्म के मातो लब खोलो
कटते भी रहो बढ़ते भी रहो मंज़िल पर ही डेरा डालो
गर तोड़ना है बेडिआ गुलामी की,
आजादी का परचम लहराना है
तो तोड़नी ही होगी खमोशी,
देना होगा पाश के सवाल का जवाब
कि हम अब तक लड़े क्यों नहीं
सुननी ही होगी कार्ल मार्क्स की
दुनिया के मजदूरों की एकता की गुहार
लगाने ही होंगे पाश के साथ मिलकर नारे
"हम लड़ेंगे साथी क्योंकि लड़ने की जरूरत है".
2
खतरनाक है हमारी खामोशी
और हमारे ही नहीं जमाने के खिलाफ है
आजादी के तराने के खिलाफ है
इतना ही नहीं, इंशानियत के मायने के भी खिलाफ है
तोड़ना ही होगा खामोशी
जुल्म को मिटाने के लिए
एक नए आज़ाद जमाने के लिए
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए
लगाने ही होगे नारे
बम-गोलों के शोर को दबाने के लिए
मानव मुक्ति का परचम फाहराने के लिए
हमें उनके हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास फिलहाल नारे लगाने का वक्त नही है
खप जाता है सारा दो जून की रोटी के लिए
लगाने होंगे नारे ये सूरत बदलने के लिए
उन फिलिस्तीनिओ के हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास इतिहास है भूगोल नहीं
जिनके नारे मंद पद जाते हैं
इज़्र्रायली बमों के शोर में
और कुछ दब जाते हैं मलवो के ढेर में
उन किसानों के भी हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जो कर्ज़ के बोझ तले दम तोड़ने को मजबूर हैं
उन आदिवासिओ के नारों में भी सुर मिलना होगा
जिनके नारे टाटा-वेदांता के सोने की खनक को ललकारते हैं
उन अभागो के हिस्से के भी नारे लगाने हैं
जिनके पास जुबान नहीं है नारे लगाने के लिए
उसे वे गिरवी रख चुके सेठ के पास
जिंदगी की ऐय्याशी के लिए
हमें तब तक लगाते रहना है नारे
जब तक सब
अपने-अपने हिस्से के नारे ख़ुद न लगाने लगें
और नारेबाजी की जरूरत खत्म हो जाए
[ईमि/25.04.2011]
उन अभागो के हिस्से के भी नारे लगाने हैं
ReplyDeleteजिनके पास जुबान नहीं है नारे लगाने के लिए
उसे वे गिरवी रख चुके सेठ के पास
जिंदगी की ऐय्याशी के लिए
जबरदस्त...
thank you satyendra ji
ReplyDelete