Sunday, March 13, 2011

shamsher

क्रांति की उम्र

क्रांति की कोई उम्र नहीं होती
वह उम्र बनी रहती है क्रांति होने तक
बनाने रखना होगा जमाने के बदलने तक
नई भोर होने तक.

वह उम्र कहीं नही जाती
वह उम्र बनी रहती है
तडपती सी गज़ल के लिये
दुश्मन के कतल के लिये
उम्र को चिढाने के लिये
दुनिया को बदलने के लिये
बीत चुकी जिनकी उम्र वे ज़िंदा लाशें हैं
धरती पर इंशानियत के तमाशे हैं.

उस उम्र को ज़िंदा रखना है
ज़ुल्म की जवान रातों के लिये
उन्हे तोड़ते सुर्ख सवेरे के लिये
ज़ुल्म के मातो के तरानो के लिये
खाक़नाशीनो की जुबानो के लिये
आजादी के पर्वानो के लिये
वह उम्र कहीं नहीं जाती
बनी रहती है इंक़िलाब के नारों के लिए.
(यह तुक्बंदी है कविता नहीं)

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