Saturday, March 5, 2011
naslvad
नस्लवाद बौद्धिक त्रासदी नहीं है बल्कि अमेरिका में १८वी शताब्दी में दास -श्रम पर आधारित पूजीवादी विकास की विचारधारा है. १७२० में विरगिनिया बूम के माध्यम से अमेरिका में आर्थिक विकास दस-श्रम से नहीं हुआ बल्कि उसी रंग की चमड़ी वाले अनुबंधित मजदूरों से. क्योंकि अफ़्रीकी मूल के गुलाम नई जलवायु में अनुकिलित नहीं हो पाए थे और ज्यादा दिन नहीं जीते थे. दस श्रम अनुबन्धित श्रम से महंगा पड़ता था . अनुबंधित मजदूरों को भी दासों की ही तरह अमानवीय हालत में रखा जाता था उन्हें जुए में दाव पर लगाया जाता था और अनबंध की अवधि पूरी होने के पहले ही उन्हें भूख और प्रताड़ना से मर दिया जाता था जिससे अनुबंध का बकाया बचाया जा सके. अनुबंध से अनुबंध की बकाया के साथ मुक्त मजदूरों ने गुलामो के साथ मिल्कस्र कई असफल विद्रोह भी किये. जब तक अनुबंधित अंग्रेजी मजदूरों पर अत्याचार की खबरें इंग्लैंड पहुचने लगी और मजदूरों की नई खेपें बंद हो गईं तब तक अफ़्रीकी मूल के गुलास्म नई जलवायु में अनुकूलित हो चुके थे. दस श्रम की बैद्धिक वैधता के लिए नस्लवाद की विचारधारा गाढ़ी गयी. नस्लवाद जीववैज्ञानिक गुण नहीं है, न ही आत्मा-परमात्मा की तरह कोई सास्वत विचार. नस्लवाद विचार नहीं बल्कि विचारधारा है जिसे रोजमर्रा की ज़िन्दगी में निर्मित और पुनर्निर्मित किया जाता है जैसे साम्रदायिकता या मर्दवाद. वैसे तो नस्लवाद की जड़ें दस-प्रथा पर विकसित प्राचीन यूनानी सभ्यता के प्रवक्ता अरस्तू तक जाती है जो सभी गैर्यूनैओन को बर्बर और स्वाभाविक दास मानता था और हर तरह की असमानता की विचारधाराओं का पूर्वज.
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