Anurag Srivastava उसी तरह 1400 साल पहले इसलाम जब आया तो जो मुसलमान कहलाते हैं वे भी थे नाम कुछ और भले हो। वैसे तो हिंदू तो कोई पैदा नहीं होता तोई बाभन पैदा होता है कोई दलित। जैसे आपके परिचय में कम पढ़े-लिखे एक बीबी वाले किसी गरीब मुसलमान के 8-10 बच्चे हैं (वैसे 8 या 10) वैसे 5-6 बच्चों वाले बहुत से हिंदुओं को मैं जानता हूं, कई इवि के पढ़े भी। 5 बच्चों वाले एक सीनियर का ऊपर मैंने जिक्र किया है। हम खुद 9 भाई-बहन थे। बच्चों के नियंत्रण की चेतना धर्म पर नहीं शिक्षा और सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। आप का श्रीवस्तव (हिंदू) पैदा होने में आपका तो कोई योगदान है नहीं, यह तो जीववैज्ञानिक दुर्घटना का परिणाम है, आप संयोग से मुसलमान पैदा हो गए होते तो क्या 8-10 बच्चे पैदा करते?
Tuesday, September 3, 2019
Monday, September 2, 2019
लल्ला पुराण 271 (धर्म और आबादी)
3 साल पहले मुसलमानों की बढ़ती आबादी से हिंदुओं के अल्पसंख्यक हो जाने खतरे की एक पोस्ट पर एक कमेंट।
राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि हिंदुओं की औसत वृद्धि दर के ही बराबर है. जब भी बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक के खतरे का हौव्वा खड़ा किया जाता है तो वह फासीवाद होता है. अरे महराज! अवधी में कहावत है कि मूस मोटाए लोढ़ा होए. कितनी भी जनसंख्या वृद्धि हो 9% से बढ़कर 90% होने में 100 पीढ़ियां लग जाएंगी. हम कुल 9 भाई-बहन थे (अब 7 हैं). मेरे मां-बाप दोनों में से कोई मुसलमान नहीं थे. मेरा एक पढ़ा-लिखा चचेरा भाई है उसके 6 बच्चे हैं, 4 बेटियों के बाद दो बेटे. उसकी पत्नी भी ब्राह्मणपुत्री है. दर-असल संघी शाखा में कदम्ताल करके, दिमाग कुंद कर लेता है और नए शगूफे नहीं गढ़ पाता. आजादी के बाद से ही अब तक हम पांच हमारे पांच का हव्वा खड़ा करता आ रहा है. गुरात चुनाव में मोदी का यह तकिया कलाम था. आपके मुसलमान मित्र तो शायद ही होंगे, लेकिन कुछ मुसलमानों को जानते होंगे, दरियाफ्त कीजिए उनकी शिक्षा-दीक्षा का स्तर क्या है और उनके कितनी बीबियां और कितने बच्चे हैं? मित्र, अभी आप युवा हैं, कहा-सुनी के आधार पर नहीं, तथ्यों और उनकी विवेक सम्मत विश्लेषण के आधार पर वक्तव्य दें, अन्यथा बौद्धिक जड़ता बनी रहेगी. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. कम या ज्यादा बच्चे पैदा करने का संबंध हिंदू या मुसलमान से नहीं, शिक्षा और सामाजिक चेतना के स्तर पर निर्भर करता है. इवि के हमारे एक अग्रज से सीनियर (अब रिटायर्ड पीसीयस) हैं, फीजिक्स में यमयस्सी की शिक्षा के बावजूद उनकी सामाजिक चेतना मेरे मां-बाप या मेरे चचेरे भाई के स्तर की ही रह गयी. पुत्र की चाहत में 4 बेटी-बेटिय के पिता हैं. 2 बेटियों के बाद जुड़वा बेटियां हो गयीं और अंत में 5वीं संतान के रूप में पुत्र-रत्न की प्राप्ति हो ही गयी. यही बात पहले इलाहाबाद के एक ग्रुप में कह दिया था, सीनियर सर तो कुछ नहीं बोले लेकिन कई अन्य लोग लट्ठ लेकर पीछे पड़ गये कि सीनियर का असम्मान कर रहा हूं. भाई तब तो मैं अपने माता-पिता जी का भी असम्मान कर रहा हूं! विकास के चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का विकास होता है।
2.09. 2016
2.09. 2016
शिक्षा और ज्ञान 240 (ज्ञान का भूगोल)
Akhil Munshi ज्ञान देशी विदेशी नहीं, सार्वभौमिक होता है, कुछ का अन्वेषण ऐतिहासिक कारणों से कहीं होता है कुछ का कहीं। वह शिक्षा के माध्यम से ।सभी जगहों में यात्रा करता है।
लल्ला पुराण 270 (भगत सिंह)
Arvind Rai 'आज अगर होते तो लेफ्टिस्ट्स की हरकतें देखकर विचार बदल लेते' क्या करते ये तो महज कयास है, जब थे तब जो किए वह इतिहास है। कुछ साल पहले श्रीगंगानगर में भगत सिंह शहादत दिवस का बड़ा कार्यक्रम था। चमनलाल के साथ भगत सिंह और साथियों के दस्तावेजों को संकलित-संपादित करने वाले उनके भांजे जगमोहन सिंह भी थे। हम लोग उनके लेखन के संदर्भ में उस कम उम्र में उनकी बौद्धक परिपक्वता की बात कर रहे थे, जगमोहन सिंह का एक वाक्य मैं उद्धृत करता रहता हूं, "Crisis of revolution, multi plies revolutionary-maturity".
शिक्षा और ज्ञान 239 (समाजीकरण)
परवरिश तथा शिक्षा के दौरान का हमारा समाजिककरण हमारे आत्मविश्वास को मजबूत करने की बजाय आत्म-अविश्वास भरता है तथा सेल्फ-बिलीफ को कमजोर करता है।
समाज से बिना सजग प्रयास के अर्जित मूल्यों को अनलर्न करना पड़ता है। मैं जब इवि में पढ़ता था तो सोचका था लेखक किसी और ग्रह से आते होंगे। जब लिखना शुरू किया तो अतिआत्मविश्वास आ गया। 1985 में एक संपादक ने कहा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पाक्षिक के लिए कॉलम लिखोगे, मैंने कहा क्यों नहीं? महीने की 300 रु. (150+150) की नियमित आमदनी की जुगाड़ हो गयी। हिंदी लेखन का भुगतान सदा दयनीय रहा है।
समाज से बिना सजग प्रयास के अर्जित मूल्यों को अनलर्न करना पड़ता है। मैं जब इवि में पढ़ता था तो सोचका था लेखक किसी और ग्रह से आते होंगे। जब लिखना शुरू किया तो अतिआत्मविश्वास आ गया। 1985 में एक संपादक ने कहा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पाक्षिक के लिए कॉलम लिखोगे, मैंने कहा क्यों नहीं? महीने की 300 रु. (150+150) की नियमित आमदनी की जुगाड़ हो गयी। हिंदी लेखन का भुगतान सदा दयनीय रहा है।
Sunday, September 1, 2019
लल्ला पुराण 269 (मुसलमान और आबादी)
Shashi K Chaturvediजनसंख्या के संघी शगूफे और अफवाह का पर्दाफास करते हुए बहुत कुछ लिखा जा चुका है. राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं की औसत वृद्धि दर के ही बराबर है. जब भी बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक के खतरे का हौव्वा खड़ा किया जाता है तो वह फासीवाद होता है. अरे महराज! अवधी में कहावत है कि मूस मोटाए लोढ़ा होए. कितनी भी जनसंख्या वृद्धि हो 9% से बढ़कर 90% होने में 100 पीढ़ियां लग जाएंगी. हम कुल 9 भाई-बहन थे (अब 7 हैं). मेरे मां-बाप दोनों में से कोई मुसलमान नहीं थे. मेरा एक पढ़ा-लिखा मूर्ख चचेरा भाई है उसके 6 बच्चे हैं, 4 बेटियों के बाद दो बेटे. उसकी पत्नी भी ब्राह्मणपुत्री है. दर-असल संघी शाखा में कदम्ताल करके, दिमाग कुंद कर लेता है और नए शगूफे नहीं गढ़ पाता. आजादी के बाद से ही अब तक हम पांच हमारे पांच का हव्वा खड़ा करता आ रहा है. गुरात चुनाव में मोदी का यह तकिया कलाम था. आपके मुसलमान मित्र तो शायद ही होंगे, लेकिन कुछ मुसलमानों को जानते होंगे, दरियाफ्त कीजिए उनकी शिक्षा-दीक्षा का स्तर क्या है और उनके कितनी बीबियां और कितने बच्चे हैं? मित्र, अभी आप युवा हैं, कहा-सुनी के आधार पर नहीं, तथ्यों और उनकी विवेक सम्मत विश्लेषण के आधार पर वक्तव्य दें, अन्यथा बौद्धिक जड़ता बनी रहेगी. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. कम या ज्यादा बच्चे पैदा करने का संबंध हिंदू या मुसलमान से नहीं, शिक्षा और सामाजिक चेतना के स्तर पर निर्भर करता है. इस मंच पर शायद हों, जीयन झा के हमारे एक अग्रज से सीनियर (अब रिटायर्ड पीसीयस) हैं, फीजिक्स में यमयस्सी की शिक्षा के बावजूद उनकी सामाजिक चेतना मेरे मां-बाप या मेरे चचेरे भाई के स्तर की ही रह गयी. पुत्र की चाहत में 5 बेटी-बेटियॆों के पिता हैं. 2 बेटियों के बाद जुड़वा बेटियां हो गयीं और अंत में 5वीं संतान के रूप में पुत्र-रत्न की प्राप्ति हो ही गयी. यही बात पहले इलाहाबाद के एक ग्रुप (चुंगी भी हो सकता है) कह दिया था, वीपी सर तो कुछ नहीं बोले लेकिन कई अन्य लोग लट्ट लेकर पीछे पड़ गये कि सीनियर का असम्मान कर रहा हूं. भाई तब तो मैं अपने पिता जी का भी असम्मान कर रहा हूं! बौद्धिक विकास का मूलमंत्र है, आत्मालोचना.
02.09.2016
02.09.2016
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