नक्सलवाद पुलिस तथा सरकार द्बवारा विकसित-प्रचारित बहुत भ्रामक शब्द है। इसकी उत्पत्ति उत्तरी बंगाल के दार्जलिंग जिले के सिलीगुड़ी ताल्लुके के एक दूर-दराज नक्सबाड़ी के नाम से हुई। 1967 में जमीन के पुनर्निवितरण और समुचित खेत मजदूरी के लिए स्थानीय किसानों ने शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू किय जिस पर पुलिस की गोलीबारी के विरुद्ध आस-पास के गांवो के किसान और चायबगानों के मजदूर आंदोलित हो गए। उस समय बंगाल में बांगला कांग्रेस के अजय मुखर्जी के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी जिसमें ज्योतिबसु उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री थे। सीपीएम की कुछ चायबगान यूनियनों तथा स्थानीय कमेटियों के कुछ नेताओं चारु मजूमदार, जंगल संथाल, कणु सन्याल आदि ने सीपीएम से विद्रोह कर नक्सलबाड़ी विद्रोह का समर्थन किया जिसके समर्थन की आवाजें कैंपसों में भी सुनाई दीं। संयुक्त मोर्चा सरकार ने आंदोलन का निर्मम दमन किया। संयुक्त मोर्चा सरकारल की बर्खास्गी के बाद कुख्यात सिद्धार्थ शंकर रॉय की कांग्रेस सरकार ने दमन की निर्ममता तेज कर दी। हजारों युवा कत्ल कर दिए गए। जिसका जीवंत चित्रण महाश्वेता देवी का उपन्या हजार चौरासीवें की मां है। 1969 में देश भर के क्रांतिकारी समूहों ने मिल कर सीपीआई (एमएल बनाया) जिसके नेताओं की धरपकड़ शुरू हुई। चारु मजूमदार जेल में ही 1972 में दम तोड़ दिए। उसके बाद सीपीआईएमएल के असंख्य टुकड़े हुए, ज्यादातर जनांदोलनों के पक्षधर है। सशस्त्र संघर्ष की पक्षधर केवल सापीआई (माओइस्ट) है।
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