न्याय मूर्ति वर्मा को बदनाम करने की सजिश की गयी है, वैसे ये नोटों की गड्डियों से न्याय देवी की मूर्ति बनाने का उपक्रम कर रहे थे, लेकिन आग ने साजिश कर दी और नोटों पर अग्निशमन विभाग की नजर पड़ गयी। प्राण प्रतिष्ठा के लिए स्थापित होने के पहले ही मूर्ति की सामग्री में आग लगा दी गयी। साजिश करता न्यायमूर्ति के आवास में घुसपैठ कर गया। यदि भ्रष्टाचार के आरोप में कुछ सच्चाई होती तो सर्वोच्च न्यायालय एपआईआर दर्ज करने की अपील क्यों खारिज करता? अदालत की अवमानना का डर न होता तो साजिशकर्ता भारत के मुख्य न्यायाधीश की मलीभगत का भी इशारा कर देता। न्यायमूर्तियों के खिलाफ इस तरह की साजिशों को रोका न गया तो आमजन का न्यायलयों से विश्वास ही उठ जाएगा। वैसे लगता है इलाहाबाद के जजों को साजिशकर्ताओं ने चिन्हित कर लिया है। इसके पहले एक न्यायमूर्ति मिश्र जी कोबदनाम करने के लिए उनके फैसले को तोड़-मरोड़ कर बलात्कार समर्थक बना दिया।
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