साहित्य अकादमी पुरस्कारों पर Abhishek Srivastava की एक सार्थक पोस्ट पर कमेंट (पोस्ट नीचे कमेंट बॉक्स में):
Prempal Sharma 'कविता:16मई के बाद' एक फासीवाद विरोधी बौद्धिक अभियान था, जो अकाल काल के गाल में समा गया, अगले अभियान की पहल का इंतजार है। साहित्य एकडमी पुरस्कार से सम्मानित कल बुर्गी तथा जनतांत्रिक बुद्धिजीवियों पनेसर, डोभाल, गौरी लंकेश की हत्याओं के बाद पुरस्कार वापसी इसी बौद्धिक क्रांति की कड़ी थी। साहित्य अकादमी पुरस्कार देने वाली फासीवादी ताकतों के हाथों पुरस्कार पाने और स्वीकार करने वाले वाले सभी एक ही राजनैतिक दरातल पर खड़े हैं चाहे वे बद्रीनारायण हों या गगन गिल। हर राजनैतिक क्रांति की इमारत बौद्धिक क्रांति की बुनियाद पर ही खड़ी होती है । यूरोप की राजनैतिक क्रांतियां भी नवजागरण और प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) बौद्धिक क्रांतियों की बुनियाद पर खड़ी हुईं।प्रतिक्रांति के मामले में प्रक्रिया उल्टी चलती है, प्रतिक्रांति की बौद्धिक औचित्य और वैधता के लिए वैचारिकी गढ़ी जाती है। ढाई हजार साल कुछ पहले बुद्ध की पहल पर एक बौद्धिक क्रांति हुई, आमजन की भाषा में द्वंद्वात्मक ज्ञान की जनतांत्रिक संस्कृति स्थापित हुई। लगभग दोहजार साल पहले शुरू हुई ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति की वैधता के लिए 'गुरुर्देवोभव' के सिद्धांत पर शिक्षा की एकाधिकारवादी संस्कृति शुरू हुई और पुराण रचे गए। दुर्भाग्य से अभी तक क्रांतियों की तुलना में प्रतिक्रांतियां अधिक दीर्घजीवी रही हैं। उम्मीद है, सामाजिक चेतना के जनवादीकरण की बुनियाद पर अगली जनवादी क्रांति ज्यादा दीर्घजीवी होगी।
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