Wednesday, September 18, 2024

बेतरतीब 186(गौहाटी)

 अभी उत्तरपूर्व भारत के परिप्रेक्ष्य में 2024 के चुनाव की रुझानों पर गौहाटी यूनिवर्सिटी के दक्षिणपूर्व एसिया अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में भागीदारी का मौका मिला। दो दिन (12-13 सितंबर) के सम्मेलन में प्रकाकांतर से अस्मिता की राजनीति विमर्श मेंअस्मिता की कई पर्तें हैं, कौन पर्त किससमूह या संगठन में निर्धारक या निर्णायक होती है, वही किसी विशिष्ट अस्मिता- राजनीति के गतिविज्ञान के नियम व सिद्धांत तय करती है। सभी तरह की अस्मिता राजनीति के आधार संकीर्ण होते हैं और विवेकशील मनष्य के रूप में मनुष्यता की बुनियादी अस्मिता पर आघात करते हैं। हमारे आदिम पूर्वजों ने खुद को विवेक के इस्तेमाल से हासिल श्रम करने की क्षमता से अपनी आजीविका का उत्पादन-पुनरुद्पान करके किया। यानि हमारी बुनियादीअस्मिता का आधार विवेक और तार्किकता है। इसके उलट, हर प्रकार की अस्मिता-राजनीति का आधार आस्था तथा पूर्वाग्रह हैं। यदि विवेक और तार्किकता अस्मिताओं के टकराव के विद्वेष तथा नफरत या मणिपुर जैसा खूनखराबा अनावश्यक हो जाए। मेघालय में एक नई पार्टी बनी है, वीपीपी (वायस ऑफ पिपुल पार्टी) सम्मेलन में भाग ले रहे उसके एक विधायक ने अपनी पार्टी के समावेशी बहुसंख्यवाद (inclusive majoritarianism) के सिद्धांत की हिमायत की। ये युवा विधायक शिलांग के एक कॉलेज में शिक्षक हैं। इनकी अस्मिता राजनीति खासी-जयंतिया अस्मिता है। इनका कहना है कि इनका बहुसंख्यकवाद अल्पसंख्यक जनजाति गारो तथा प्रवासी मेघालयी लोगों के हितों का भी ध्यान रखती है। समावेशी बहुसंख्यकवाद कब विशिष्ट बहुसंख्यकवाद बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता,हिंदुत्व सांप्रदायिक बहुसंख्यकवाद भी तो सबका साथ-सबका विकास की बात करता है। मणिपुर यूनिवर्सिटी के एक युवा प्रोफेसर की दो संताने हैं. एक बेटा. एक बेटी। वे पशोपश में हैं कि तीसरी संतान पैदा करें कि नहीं? इस पशोपश की बुनियाद में है मणिपुर में मैती जनजाति की आबादी का विस्तार। ये प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू से पढ़कर गए हैं। जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर मनुष्यता की अस्मिता की जरूरत है।

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