जिसे लोग फेंकू समझते थे
निकला यह दर-असल बेंचू
होते ही गद्दी पर विराजमान
बेच दिया देश का संविधान
पूरा करने को बजरंगी वीरों के अरमान
थमा दिया उनको कानून-व्यवस्था की कमान
किया दस्तखत नैरोबी में गैट्स के दस्तावेज पर
बेच दिया शिक्षा और खेती विश्वबैंक के आदेश पर
पहले से ही जारी थी जल-जमीन-जंगल की बिक्री
राष्ट्रवादी ऊर्जा इसने उसमे चारचांद लगा दी
शुरू किया है बेचना इसने अब रेल
होगा फिर आसमान बेचने का खेल
जनसंपदा की बिक्री की लंबी है फेहरिस्त
जन है मगर राष्ट्रोंमाद के तगड़े नशे में मस्त
बचेगा नहीं कुछ बेचने को राष्ट्रपति भवन के सिवा
धनपशुओं को भी तो चाहिए रायसीना हिल्स की हवा
(ईमि: 22.06.2017)
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