Monday, April 16, 2012
inqilab
Mohan Shrotriya भाई, सबसे पहले तो शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने यह बहस शुरू किया और दूसरे आवारा पूँजी के लिए "बेलगाम" विशेषण कई दिनों से दिमाग से उतर गया था. आपने याद दिला दिया. मैं तो चिरंतन आशावादी हूँ लेकिन 'आब्जेक्टिव' फैक्टर्स' के बावजूद जनचेतना का स्तर देखते हुए अभी 'सब्जेक्टिव फैक्टर्स' के समुचित विकास की आहट भी सुनायी नहीं पड़ रही है. मुख्य-धारा का बौद्धिक वर्ग आत्म-मोह से ग्रस्त हो या तो अप्रासंगिक पड़ा है या व्यवस्था का भोंपू बन गया है. कामगारों की 'क्लास इन इटसेल्फ' से 'क्लास फार इटसेल्फ' की यात्रा की गति बहुत ही धीमी है. समुचित 'सब्जेक्टिव फैक्टर्स' -- वर्गचेतना और क्रांतिकारी विचारधारा से लैस मजदूर वर्ग -- की उपयुक्त उपस्थिति के अभाव में जनासंतोष के आब्जेक्टिव फैक्टर्स को लालू-मायावती किस्म के राजनैतिक उपकरणों ने बेलगाम पूँजी की ही सेवा में समर्पित कर दिया. सच कह रहे हैं जना-असंतोष को ज्यादा दिनों तक दबाया नहीं जा सकता लेकिन जरूरत उसे दिशा देने की है, अन्यथा स्वस्फूर्तता की अराजकता में खोकर अन्ना-रामदेव की नौटंकी में खो जाएगा.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment